अपने देश में जारी होने वाले कुछ अजीबो
गरीब फतवों और खापों के फरमानों से अगर आप पर्याप्त दुःखी न हो चुके हों तो ज़रा
दूर देश के इस फैसले के बारे में भी जान लीजिए. आज मैं बात कर रहा हूं सुदूर
दक्षिण अफ्रीका की जहां के क्वाज़ुलु नैटाल इलाके के एक ज़िले उथुकेले की मेयर दुदु
माज़िबुको ने एक ऐसा आदेश ज़ारी किया है जो आपको सोचने को मज़बूर करेगा कि अभी
इक्कीसवीं सदी चल रही है या दसवीं-बारहवीं सदी. जिस नगरपालिका की ये मेयर हैं उसने
इस साल से अपने यहां के युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए वार्षिक छात्रवृत्तियां
प्रदान करने की घोषणा की थी. बताया गया कि वैसे तो यह नगरपालिका अपने इलाके के सौ
से ज़्यादा विद्यार्थियों को उच्च अध्ययन के लिए यह छात्रवृत्ति प्रदान करती है
लेकिन इस बरस इसमें एक और प्रावधान जोड़ कर इसे केवल उन छात्राओं तक सीमित कर दिया गया है जो इस आशय का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करेंगी कि
वे उस तिथि विशेष तक कुंवारी (वर्जिन) हैं. और क्योंकि इस योजना का लाभ छात्रा के
शिक्षण संस्थान में अध्ययन के तमाम वर्षों तक देय है, इसे प्राप्त करने की
इच्छुक छात्रा को अपनी छात्रवृत्ति का
नवीनीकरण कराने के लिए हर बरस इस आशय का
प्रमाण पत्र देना होगा. बताया गया
है कि इस बरस सोलह छात्राओं ने इस आशय का प्रमाण पत्र देकर यह छात्रवृत्ति प्राप्त
कर ली है.
बहुत स्वाभाविक है कि इस आदेश पर तीव्र प्रतिक्रियाएं
हुई हैं. मानव अधिकार समूहों और लैंगिक समानता के पक्षधरों ने उचित ही यह सवाल
उठाया है कि कौमार्य की जांच की शर्त केवल युवतियों पर ही क्यों लागू की जा रही है? उन्होंने इसे व्यक्ति की निजता का हनन भी माना
है. एक एक्टिविस्ट जेसिका थॉर्प ने इस भेदभाव
को भी रेखांकित किया है कि छात्रों को तो उनके कौमार्य या उसकी अनुपस्थिति के लिए पुरस्कृत या दंडित नहीं किया
जाता है जबकि छात्राओं पर यह मापदण्ड लागू किया जा रहा है. वहां के अनेक जाने-माने
शिक्षाविदों ने खुलकर यह बात कही है कि सेक्सुअली सक्रिय होने का शिक्षा ग्रहण करने से कोई
सम्बन्ध नहीं है और इस कारण सेक्स को शिक्षा प्राप्त करने के अवसरों के साथ जोड़ना
अनुपयुक्त है. मेयर महोदया ने अपने निर्णय को उचित ठहराते हुए कहा था कि कौमार्य का प्रमाण देने का यह प्रावधान
लड़कियों को पवित्र और सेक्सुअल गतिविधियों से दूर रखकर उन्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान
केन्द्रित करने में मददगार साबित होगा. एक स्थानीय रेडियो स्टेशन से अपने प्रसारण
में उन्होंने फरमाया, “हमारे वास्ते तो यह एक तरीका है आपको इस बात के लिए धन्यवाद
देने का कि आपने अभी तक अपने आप को खुद के लिए बचाए रखा है और तब तक बचाए रखेंगी
जब तक कि आप डिग्री या प्रमाण पत्र
प्राप्त नहीं कर लेतीं.”
जब मेयर महोदया के इस फैसले की ज़्यादा ही आलोचना
हुई तो उन्होंने कहा कि यह योजना तो उस
इलाके में एच आई वी, एड्स और अवांछित गर्भधारण के मामलों को नियंत्रित करने के लिए लाई गई है. वैसे, यह बात सही है कि
दुनिया में एच आई वी का फैलाव दक्षिण अफ्रीका में बहुत ज़्यादा है. 2013 के
आंकड़ों के अनुसार उस देश में 63 लाख लोग
इससे ग्रस्त थे. वहां के अपराध के आंकड़े बताते हैं कि साल 2014-2015 के मध्य
सेक्सुअल अपराधों के 53, 617 मामले दर्ज़
हुए थे, हालांकि जानकारों का कहना है कि असली तस्वीर तो इससे भी बुरी है.
लेकिन इन
आंकड़ों के बावज़ूद इस बात से कोई
सहमत नहीं हो पा रहा है कि मेयर महोदया का यह फरमान उचित है और इससे हालात सुधर
जाएंगे. देश के जेण्डर समानता के अध्यक्ष
तक ने कह दिया है कि भले ही मेयर के इरादे नेक हों, हम कौमार्य के आधार पर छात्रवृत्ति देने के उनके निर्णय से सहमत नहीं हैं. यह तो गर्भधारण और कौमार्य
के आधार पर लैंगिक भेदभाव का मामला है और लड़कों के भी खिलाफ़ है.” यहीं यह बात भी
ग़ौर तलब है कि दक्षिण अफ्रीका में सहमति से यौन सम्बध कायम करने की उम्र 16 बरस है
और कुछ अपवादों में इसे घटाकर 12 से 16 बरस तक भी लाया जा सकता है. बल्कि इस
जानकारी के सन्दर्भ में तो छात्रवृत्ति के लिए कौमार्य परीक्षण की शर्त और अधिक
असंगत प्रतीत होने लगती है. यह शर्त और अधिक
हास्यास्पद इस जानकारी से भी लगने लगती है कि कौमार्य परीक्षण जुलु
परम्पराओं के आधार पर किए जाने की बात कही गई है. जुलु परम्परा में यह परीक्षण
वृद्धाएं करती हैं जो आम तौर पर किसी लड़की की आंखों और उसके चलने के ढंग को देखकर ही फैसला सुना देती
हैं कि वो कुमारी है या नहीं.
▪▪▪ जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगल्वार, 23 फरवरी, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.
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