बहुत मुमकिन है कि आपने भी मेरा यह आलेख
पढ़ने से पहले ग्रिड गर्ल्स का नाम न सुना हो! यह खबर पढ़ने से पहले कि दुनिया भर की
स्पोर्ट्स कारों की श्रंखला एफआईए वर्ल्ड एण्ड्यूरेंस चैम्पियनशिप, जिसे संक्षेप
में डब्ल्यूईसी नाम से जाना जाता है, ने यह घोषणा की है कि वह अपनी रेसों के दौरान
ग्रिड गर्ल्स को इस्तेमाल नहीं करेगी, मैं भी इनके बारे में कुछ नहीं जानता था.
लेकिन अब आपको बता सकता हूं कि रोमांचक कार रेसों की दुनिया में ग्रिड गर्ल्स वे
खूबसूरत बालाएं होती हैं जो रेस शुरु होने से पहले अत्यल्प और बदन से चिपके
वस्त्रों में रेसिंग कारों के साथ खड़ी नज़र आती हैं. आम तौर पर इनके हाथों में कार
के स्थान के नम्बर का प्ले कार्ड भी होता है. चाहें तो मान सकते हैं कि कार रेसिंग
में इनका वही स्थान है जो आईपीएल जैसी क्रिकेट श्रंखलाओं में चीयर लीडर्स का होता है.
डब्ल्यूईसी की इस घोषणा को दुनिया भर में
प्रचलित स्त्रियों को एक सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप में देखने और प्रयोग करने की
अनुचित प्रवृत्ति से मुक्ति के एक कदम के रूप में देखा जा रहा है. हम पाते हैं कि दुनिया
भर में ऐसे तमाम उत्पादों को बेचने के लिए भी स्त्री देह का प्रयोग किया जाता है
जिनसे स्त्री का दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं होता है. हमारा अपना देश भी इसका अपवाद
नहीं है. ऐसे में अगर मोटर स्पोर्ट्स को और क्रिकेट जैसे खेल को बेचने के लिए स्त्री
देह का प्रयोग किया जाता है तो इस पर कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए. बेचने वाले का
तो पूरा ध्यान मुनाफे पर ही होता है. अगर ऐसा न होता तो दुनिया भर में बहुत सारे
नुकसानदेह पदार्थों के कारोबार भी इस कदर फलते-फूलते नहीं. लेकिन हम तो अपनी मूल
बात पर लौटते हैं.
डब्ल्यूईसी के इस फैसले का जिन महत्वपूर्ण
लोगों ने स्वागत किया है उनमें से एक हैं 22 साल की केटी मेक जो अमरीका के फ्लोरिडा
राज्य में रहती हैं. केटी का मानना है कि
बिना बात किए आप किसी सोच में बदलाव नहीं
ला सकते या फिर बुरे हालात को बदल नहीं सकते. केटी ने अपने इसी सोच के तहत
डब्ल्यूईसी के इस फैसले का अपने ट्वीट्स के माध्यम से पुरज़ोर समर्थन किया है और
उन्हें भी खूब समर्थन मिला है, उनके
ट्वीट्स को खूब दुहराया गया है. 2013 में केटी को जब थायरॉयड कैंसर हुआ तो उनका इलाज जिस डॉक्टर ने किया वो
खुद भी स्पोर्ट्स कार की ड्रावर रह चुकी और ग्रैण्ड एम सिरीज़ की रेस में हिस्सा ले
चुकी थीं. इस डॉक्टर से केटी की मुलाकात भी एक रेसिंग प्रतियोगिता के दौरान ही हुई
थी. केटी का विचार है कि रेस एक उम्दा खेल है लेकिन इसे और विकसित करने की जरूरत
है. वे इसी उम्मीद से इस खेल के दौरान
लाइव ट्वीट्स करती हैं कि हो सकता है कि जो इस रेस को पसन्द नहीं करता है वो भी
इसे पसन्द करने लग जाए. केटी मानती हैं कि रेसिंग भी दुनिया के अन्य खेलों जैसा ही
है. बेहतरीन मशीन का ट्रैक पर भागने का रोमांच आपको अपने आप इसका दीवाना बना देता
है. केटी यह बात अच्छी तरह से जानती हैं कि मोटरस्पोर्ट्स में ज़्यादातर रेसर पुरुष हैं लेकिन वे इसे कोई
समस्या नहीं मानती हैं. समस्या दूसरी है.
उनके ट्वीट्स को पढ़कर कई महिलाओं ने उनसे सम्पर्क
किया और बताया कि उन्हें ट्रैक पर सेक्सिज़्म का शिकार बनना पड़ा. बकौल केटी, उनके वृत्तांत
दिल दहला देने वाले थे. लेकिन इसके बावज़ूद
केटी सच्चे मन से चाहती हैं कि मोटरस्पोर्ट्स की दुनिया में महिलाओं को लेकर जो
सोच है वह बदलना चाहिए. और उन्हें लगता है कि बदलाव आ भी रहा है. बहुत सारी
महिलाएं अब इस स्पोर्ट्स को पसन्द करने लगी हैं और युवा लड़कियां भी रेसिंग के
प्रति उत्साहित नज़र आने लगी हैं.
असल में सभी जगह हो यह रहा है, चाहे वो
खेल हो या कुछ और, कि मूल की बजाय या उसके साथ-साथ उसकी पैकेजिंग पर
खासा ज़ोर दिया जा रहा है ताकि जिनकी उसमें कोई रुचि नहीं है वे भी इतर कारणों से
उसकी तरफ खिंचे चले आएं. सीधे-सीधे कहूं तो यह कि आपकी इस खेल विशेष में रुचि नहीं
है, तो कोई बात नहीं, आप तो हमारी ग्रिड गर्ल्स या चीयर लीडर्स को देखने के लिए ही
टिकिट खरीद लीजिए. हमें आपकी रुचि में नहीं आपके पर्स में दिलचस्पी है. लेकिन,
खुशी की बात यह है कि आयोजक भी अब गतिविधि विशेष के प्रति गम्भीर होने लगे हैं और
उससे जोड़ी जाने वाली अवांछित हरकतों के विरोध में उठ खड़े होने लगे हैं. आशा की
जानी चाहिए कि इस मुहिम का और विस्तार होगा.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 26 मई, 2015 को क्या ज़रूरत है खेलों में स्त्री देह की नुमाइश शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.
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