Sunday, January 10, 2010
दूसरों की नज़रों से देखने की कोशिश में
पिछले एक दशक में अपनी तीन सुपर बेस्टसेलर किताबों द टिपिंग पॉइंट, ब्लिंक और आउटलायर्स से बहु चर्चित और अपने परिवेश को देखने का हमरा नज़रिया बदल डालने वाले लेखक माल्कम ग्लैडवेल की नई किताब व्हाट द डॉग सॉ: एंड अदर एडवेंचर्स असल में लगभग इसी कालावधि में न्यूयॉर्कर पत्रिका में छपे उनके 19 बेहतरीन लेखों का संचयन है.
ग्लैडवेल का कहना है कि “उम्दा लेखन आपको मना लेने की अपनी क्षमता के बल पर सफल या असफल नहीं होता. यह सफल या असफल तो होता है आपको बांधे रखने की अपनी क्षमता के आधार पर, और इस आधार पर कि वह आपको दूसरों के दिमाग की कितनी झलक दिखला पाता है.”
इस किताब के 19 लेखों में से एक तिहाई तो उन छोटी-मोटी प्रतिभाओं –माइनर जीनियसों- के पोर्ट्रेट के रूप में हैं जो मोटे तौर पर सांस्कृतिक प्रवृत्तियों से संबद्ध हैं. इनमें वह महिला भी है जिसने बाल रंगने की सामग्री तैयार कर अमरीकी महिलाओं की ज़िन्दगी में बड़ा परिवर्तन किया, और वह उद्यमी भी है जिसने एक ख़ास तरह का केचप तैयार किया और हमारे लेखक को स्वाद के मनोविज्ञान की पड़ताल का मौका दिया. किताब के दूसरे एक तिहाई में शामिल हैं वे लेख जो आंकड़ों के आधार पर की जाने वाली भविष्यवाणियों के खतरों का विश्लेषण करते हैं. जैसे एनरॉन की नाकामयाबी, 9/11, जॉन एफ कैनेडी जूनियर की प्राण घातक उड़ान, स्पेस शटल चैलेंजर का विस्फोट, 1991 के खाड़ी युद्ध के दौरान स्कड मिसाइलों का लक्ष्य भ्रष्ट हो जाना, आदि. इनमें से हर नाकामयाबी के लिए ग्लैडवेल तर्क की किसी एक मिथ्या प्रतीति को दोषी ठहराते हैं और कहते हैं कि ज़्यादा सूचनाएं हमेशा ही बेहतर सिद्ध होती हैं, विशेष स्थितियों में घटनाएं एक ख़ास क्रम में परिचालित होती हैं और अगर हम प्रयास करें तो असफलताओं की आशंकाओं को बहुत कम कर सकते हैं. किताब का तीसरा एक तिहाई उन भविष्यवाणियों या निर्णयों के बारे में हैं जो हम अक्सर लोगों के बारे में कर दिया करते हैं.
ग्लैडवेल पूछते हैं कि आखिर हमें कैसे पता चलता है कि कोई व्यक्ति स्मार्ट है, बुरा है, या काबिल है? यहां वे विस्तार से उन प्रविधियों की चर्चा करते हैं जिनका इस्तेमाल शिक्षा शास्त्रियों द्वारा युवा अध्यापकों के मूल्यांकन के लिए या एफबीआई द्वारा अपराधियों की पहचान के लिए किया जाता है. कहना अनावश्यक है कि इन सबको ग्लैडवेल संशय की निगाह से देखते हैं. इस किताब में ग्लैडवेल के लगभग सभी लेखों में एक बात समान है, और वह यह कि वे हमें हमारी दुनिया को दूसरों की निगाहों से दिखाना चाहते हैं. यह दूसरा कोई भी हो सकता है, एक कुत्ता भी. और इसीलिए किताब का शीर्षक: क्या देखा कुत्ते ने.
ग्लैडवेल की सोच शैली का एक नमूना मुर्रे बार की कहानी में देखा जा सकता है. मुर्रे बार एक हद दर्ज़े का शराबी है जो नेवादा की गलियों में रहता है. उसका ज़्यादा वक़्त अस्पतालों में या पुलिस थानों में बीतता है. कुल मिलाकर वह व्यवस्था पर एक बोझ है. लेकिन यहीं ग्लैडवेल की मौलिकता सामने आती है. ग्लैडवेल कहते हैं कि मुर्रे बार जैसे लोग व्यवस्था पर बोझ नहीं हैं, बल्कि वे व्यवस्था की ग़लतियों की उपज हैं. ग्लैडवेल ऐसे लोगों से निपटने के समाज के तरीकों पर ही प्रश्न चिह्न लगाते हैं. दस सालों में मुर्रे का अस्पताल का बिल बढकर एक मिलियन डॉलर हो गया है, और एक पुलिस अधिकारी के अनुसार, ‘यह वह मूल्य है जिसे हमें मुर्रे के लिए कुछ नहीं करने के लिए चुकाना है.’ यहीं से ग्लैडवेल अपना तर्क सामने लाते हैं और कहते हैं कि समाज को लोगों को बेघर रखना ज़्यादा रास आता है, बजाय उनके लिए घरों का इंतज़ाम करने के. अगर समाज ऐसे लोगों के लिए घरों का इंतज़ाम करे और उनकी देखभाल करे तो वह ज़्यादा सस्ता होगा. लेकिन समाज समस्या को सुलझाने और समानता देने की बजाय नैतिकता की अवधारणा पर अधिक विश्वास करता है और यह पूछ कर कि ऐसे निकम्मे लोगों को घर और सुविधाएं दी ही क्यों जाए, अपनी समस्याओं को बढ़ाता है. अपनी बात के पक्ष में वे ऐसे अनेक कार्यक्रमों के हवाले भी देते हैं.
तो, यह है शैली ग्लैडवेल की. वे एक विचार लेते हैं, उसके इर्द गिर्द एक मानवीय कहानी बुनते हैं और फिर बात को किसी निष्कर्ष तक ले जाते हैं. निश्चय ही जिन निष्कर्षों तक वे ले जाते हैं, वे प्राय: चौंकाने वाले होते हैं. और यही है ग्लैडवेल के लेखन की सबसे बड़ी खासियत. ग्लैडवेल जानी-पहचानी बातें नहीं करते, न नैतिकता के उपदेश देते हैं. लेकिन उनको पढने के बाद निश्चय ही हम चीज़ों को दूसरे पहलू से देखने को प्रेरित होते हैं.
Discussed book:
What the Dog Saw: And Other Adventures
By Malcolm Gladwell
Published by: Little, Brown and Company
Hardcover, 432 pages
US $ 27.99
राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिष्ट में मेरे पाक्षिक कॉलम किताबों की दुनिया के अंतर्गत 10 जनवरी 2010 को प्रकाशित.
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2 comments:
वाह..अब ज़रूर पढ़ूंगा।
पुस्तक दर पुस्तक ग्लेडवेल की लेखनी बेहतर होती जा रही है, चंकी सौस पर उनका प्रजेंटेशन यु ट्यूब पर उपलब्ध है.
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