Monday, April 13, 2009

नए भारत में प्रेम की तलाश


तीस पार की अनिता जैन एक पत्रकार हैं. हॉर्वर्ड में पढी और न्यूयॉर्क मैगज़ीन, वाल स्ट्रीट जर्नल, फाइनेंशियल टाइम्स, ट्रेवल एण्ड लेज़र जैसी पत्रिकाओं में छपती रही हैं और मेक्सिको सिटी, लंदन, न्यूयॉर्क वगैरह में काम कर चुकी हैं. 2005 में उन्होंने न्यूयॉर्क मैगज़ीन में एक लेख लिखा कि वे अमरीकी डेटिंग व्यवस्था से ऊब चुकी हैं और अब उस परम्परागत ‘अरेंज्ड’ भारतीय विवाह के बारे में सोच रही हैं जिसके अब तक वे खिलाफ रही थीं. मेरिइंग अनिता: अ क्वेस्ट फोर लव इन द न्यू इण्डिया शीर्षक अपनी संस्मरणात्मक किताब में अनिता ने इसी बारे में अपनी भारत यात्रा का दिलचस्प वृत्तांत प्रस्तुत किया है. अनिता उन महिलाओं में से हैं जिन्होंने आधुनिकता को न केवल जिया, बल्कि भली भांति समझा भी है और इसीलिए वे उसके बारे में सवाल उठाने में भी समर्थ हैं. उनका यह पूछना कि क्या आधुनिकता वाकई हमें आगे ले जा रही है, बहुत अर्थपूर्ण है. इसलिए अर्थपूर्ण है कि अगर स्त्री के सदर्भ में आधुनिकता का अर्थ आज़ादी है तो फिर क्यों इतनी बड़ी तादाद में स्त्रियां अपने ही रचे अकेलेपन के जाल में कैद हैं?

हम भारतीयों को अनिता की इस टिप्पणी से खुशी होगी कि दिल्ली में डेटिंग न्यूयॉर्क की तुलना में कम जटिल, कम भरमाने वाली और अहं को कम आहत करने वाली है. यह बात वे पुराने किस्म के वधू-आकांक्षी मर्दों और नए ज़माने के आत्म-विश्वास से लबरेज़ भारतीय युवकों की तुलना के बाद कहती हैं. उन्होंने अनुभव किया कि न्यूयॉर्क के युवा ड्रिंक्स पर या ऑनलाइन डेटिंग पर भले ही मज़ाकिया और सुसंस्कृत होने का आभास देते हों, उनमें व्यक्तित्व और कमिटमेण्ट का अभाव साफ नज़र आता है. वे खुद को न्यूयॉर्क की अन्य महिलाओं की ही तरह मानती हैं जिनकी शिकायत होती है कि मर्द लोग या तो बेहद महत्वाकांक्षी होते हैं या क़तई नहीं, वे या तो बहुत आतुर होते हैं, या बिल्कुल भी नहीं. पत्नी के रूप में उन्हें एक ऐसी स्त्री की तलाश होती है जो उनके बॉस, दोस्तों और परिवार के सामने गर्व से प्रस्तुत की जा सके. वे चाहते हैं कि उनकी पत्नी किसी पार्टी में जाकर महज़ डाइट कोक ही न ले, मार्टिनी भी सिप करे. लेकिन उनकी चाहत यह भी होती है कि वह मार्टिनी के तीन गिलास न पी जाए.

अनिता दिल्ली आकर बदले हुए भारतीय यथार्थ से रू-ब-रू होती हैं और अमरीकी यथार्थ से उसकी तुलना करती चलती हैं. वैसे तो उन्हें लगता है कि अमरीका में अपने मूल देश के बारे में वे जो सुनती रही है, असलियत उससे काफी आगे निकल चुकी है और पिछले पांच-दस बरसों में शहरी भारत बहुत बदला है. फिर भी भारत का बड़ा हिस्सा अभी भी जाति और वर्ग की गिरफ्त में है. उन्हें भारत में ऐसे युवा मिलते हैं जो एक तरफ तो मुक्त जीवन के आकांक्षी हैं और दूसरी तरफ जाति की बेड़ियों में भी मज़बूती से जकड़े हुए हैं. उनकी कई चचेरी बहनें हैं जो छोटे कस्बों में रहती हैं और जिन्हें इतनी भी आज़ादी मयस्सर नहीं है कि वे अपने मन से अपने गहने तक उतार सकें, लेकिन फिर भी वे खुश हैं.

अनिता कहती हैं कि ज़्यादातर भारतीय भाषाओं में शादी या इसका समानार्थक शब्द ही वह शब्द है जो बच्चा मम्मी और पापा शब्दों के बाद सीख लेता है. मां-बाप के मन पर अपनी बेटी की चिंता सदा छायी रहती है. वे बताती हैं कि जब अपने छुटपन में वे एक तीन-मंज़िला इमारत की बालकनी से नीचे गिर पड़ी तो उनकी मां की पहली चिन्ता यही थी कि इस लड़की का हाथ टूट चुका है, यह जानने के बाद कौन लड़का इससे शादी करेगा?

अनिता पाती हैं कि भारत में शादी के मामले में पढाकू डॉक्टर या इंजीनियर की सबसे ज़्यादा मांग है, लेकिन उनकी अपनी मानसिकता इनकी बजाय किसी पढे लिखे, फेमिनिस्ट मानसिकता वाले, खूब दुनिया देखे जीवन साथी की चाह रखती है. यहां वे एक 35 वर्षीय भारतीय वकील से मिलती हैं, जिसका नाम नील है. नील कहता है कि यह कैसी अजीब बात है कि अमरीका में एक युगल वर्षों डेटिंग करता है फिर भी तै नहीं कर पाता कि उन्हें शादी करनी है या नहीं, जबकि भारत में एक या दो मुलाक़ातों में ही इस बात का निर्णय हो जाता है. अनिता कहती हैं कि उन जैसी स्त्रियों की तो यह आदत ही बन चुकी है कि डेटिंग के मामले में वे दो तरह के रवैये रखती हैं. जब वे किसी भारतीय के साथ डेट पर जाती हैं तो उससे जो बात कहती हैं (मैं चाहती हूं कि मेरा पति मेरे घर के काम काज में हाथ बंटाये) वह बात वे किसी अमरीकी युवक से कभी नहीं कहतीं.

अनिता सबसे खास बात यह कहती हैं कि न्यूयॉर्क में उनकी कुछ एकल मित्र अभी भी इस बात के प्रति आश्वस्त नहीं हैं कि उन्हें शादी कर ही लेनी चाहिए. असल में, कोई भी आधुनिक स्त्री किसी भी विकल्प का दरवाज़ा बन्द नहीं करना चाहती. अनिता यह भी कहती हैं कि अमरीका और भारत दोनों ही देशों में किसी स्वतंत्र विचारों वाली, मज़बूत राय रखने वाली और ज़्यादा मीन-मेख निकालने वाली लड़की की शादी हो पाना मुश्क़िल है. वे सबसे खास बात तो यह कहती हैं कि आप भले ही किसी लड़की को अमरीका से बाहर ले जाएं, अमरीकी आदर्शों को उसके दिल से बाहर नहीं निकाल सकते.

क्या यही बात हिन्दुस्तानी लड़कियों के बारे में भी नहीं कही जा सकती?


राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिष्ट में प्रकाशित मेरे पाक्षिक कॉलम 'किताबों की दुनिया' के अंतर्गत रविवार, दिनांक 12 अप्रेल, 2009 को प्रकाशित आलेख का किंचित विस्तृत पाठ.

Discussed book:
Marrying Anita: A Quest for Love in the New India
By Anita Jain
Published by Bloomsbury USA
Pages 320
Us $ 24.99










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7 comments:

Anil Kumar said...

रोचक, दिल सोचने को मजबूर हो गया! यह पुस्तक तो पढ़नी ही पड़ेगी! यदि कोई राखी सावंत को भी इसकी एक प्रति दे दे तो ....

श्यामल सुमन said...

भले रहें चाहें कहीं पहनें कोई वेष।
रीति नीति अपनी भली भला है अपना देश।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

सादर
श्यामल सुमन
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मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
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shyamalsuman@gmail.com

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

अनिल जी, आप खरीद लें, पढ लें और फिर राखी जी को भिजवा दें. अगर उन्हें पूरी किताब पढने की फुर्सत ना हो तो मेरा यह छोटा-सा आलेख ही उन्हें भिजवा दें. इस बहाने मेरी भी जान-पहचान हो जाएगी उनसे और आपकी भी.

Anil Kumar said...

ऐसी राखियों से पहचान न ही बने तो ही अच्छा। नकली शरीर और बनावटी मानसिकता का मैं न कभी कायल था, न कभी रहूंगा। देसी आदमी हूं, असली खाता हूं, असली पहनता हूं और असली सोचता हूं। देखते हैं कि इस स्वयंवर के विजेता से उनकी कितने दिन निभती है।

Publisher said...

सुंदर। आपके शब्दों की बुनावट के हम कायल हैं, सर।

माधव हाड़ा said...

बधाई! ऐसी किताब का हिंदी अनुवाद होना चहिए.

Charu said...

Very well written Papa ji,I need to read this book now