तेहरान के एक पूर्व मेयर और शाह के शासन काल में ईरानी संसद की पहली महिला सांसद निज़हत नफीसी की बेटी अज़र नफीसी की संस्मरणात्मक किताब थिंग्ज़ आई हैव बीन साइलेण्ट अबाउट प्रकाशित होते ही चर्चा में आ गई है. इन्हीं अज़र नफीसी की 2003 में आई पिछली किताब रीडिंग लोलिता इन तेहरान की पन्द्रह लाख प्रतियां बिकी थीं और उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समकालीन क्लासिक माना गया था. अपनी इस नई किताब में अज़र ने बदलते हुए ईरान में तनाशाह मां के साथ बड़े होने का मर्मस्पर्शी वर्णन किया है.
किताब का स्वर साहित्य की विमुक्तकारी भूमिका की प्रशस्ति का है. प्रारम्भिक पन्नों से यह आस जगने लगती है कि लेखिका अपने जीवन के बारे में कुछ सनसनीखेज रहस्योद्घाटन करेगी, लेकिन जैसे-जैसे आगे पढते हैं, हम पाते हैं कि उनकी रुचि सनसनी पैदा करने में नहीं बल्कि अपनी डिफिकल्ट मां के साथ अपने विक्षोभपूर्ण रिश्तों के बयान और उनके विश्लेषण में है. ईरान की सब कुछ को गोपन रखने की संस्कृति का अतिक्रमण करते हुए वे यह कहते हुए सब कुछ खोलती हैं कि “मां के बारे में अब सब कुछ लिखकर और अपनी चुप्पी तोड़कर मैं प्रतिरोध का एक और प्रयास कर रही हूं.” लेखिका यह कहना भी नहीं भूलतीं कि “जिन सच्चाइयों को हम जानते हैं, अब उनके बारे में चुप नहीं रहा जा सकता”.
तानाशाह मां के प्रति अपनी नाखुशी का इज़हार करते हुए अज़र नफीसी निजी इतिहास को राजनीतिक इतिहास के साथ गूंथती चलती है, और यही बात इस किताब को महत्वपूर्ण बनाती है. असल में मां के प्रति उनका क्रुद्ध और उग्र प्रतिरोध उस इस्लामी सर्व सत्तात्मक निज़ाम के प्रति भी प्रतिरोध है जो 1979 में ईरान में स्थापित हुआ था. वे लिखती हैं, “यह समझने से बहुत पहले ही कि एक निर्मम राजनीतिक सत्ता किस तरह अपने नागरिकों पर सवार होती है और उनकी पहचान और निजता छीनती है, मैंने अपने परिवार के भीतर अपने निजी जीवन में यह महसूस कर लिया था.” वे कहती हैं, “इस्लामी क्रांति के बाद मैं तो मज़ाक में यह कहा करती थी कि हमने तो अपनी मां के साथ रहते हुए खुद को पहले ही ऐसे समय के लिए तैयार कर लिया था.”
अज़र नफीसी को बहुत पहले ही यह भनक पड़ गई थी कि एक दम्पती के रूप में उनके मां-बाप सुखी नहीं हैं. मां और बाप दोनों ही अपने जीवन के बारे में गढी हुई बातें बच्चों को बताते रहे. अज़र नफीसी की मां बुद्धिमती किंतु जटिल व्यक्तित्व वाली थी. महत्व भरी और रोमाण्टिक ज़िन्दगी के उनके अपने सपने पूरे नहीं हो पाये तो उन्होंने अपने, अपने परिवार और अपने विगत के बारे में अनेक खुशनुमा वृत्तांत गढ लिए. अज़र इन वृत्तांतों की हक़ीक़त जानती थी. उधर पिता ने एक दूसरी तरह की किस्सगोई में पलायन कर राहत पाने की चेष्टा की. वे अपने बच्चों को शाहनामा जैसे क्लासिक की कथाएं सुन-सुना कर सुकून पाने लगे. पिता का साहित्यिक रुझान बेटी को विरासत में मिला. अज़र की पूरी सहानुभूति अपने पिता के साथ और खुली नाराज़गी अपनी मां के प्रति किताब के हर शब्द से टपकती है.
साठ के दशक में जब उनके पिता को राजनीतिक कारणों से पांच साल जेल में रहना पड़ा तब किशोरी अज़र को मां के दबाव में अनचाही शादी के लिए तैयार होना पड़ा. ओक्लाहोमा यूनिवर्सिटी में पढते हुए उन्होंने इस पति को तलाक दिया और ईरानी छात्र आंदोलन में कूद पड़ीं. वे कहती हैं, “सत्तर के दशक में विदेश में रह रहे किसी भी ईरानी के लिए सरकार विरोधी होना लाजमी था, लेकिन देश के भीतर स्थितियां भिन्न थीं.” 1979 में, क्रांति के बाद वे अपने नए पति के साथ ईरान लौटीं, लेकिन देश का नया शासन भी बेहतर नहीं था. अज़र और उनके दोस्तों को परेशान किया गया और जेल भी भेजा गया. जब वे तेहरान विश्वविद्यालय में पढ़ा रहीं थी तब उन्हें बुर्क़ा न पहनने के ज़ुर्म में नौकरी से हटाया गया. यह अलग बात है कि इसके बावज़ूद उन्होंने निजी अध्ययन समूह बनाकर वैकल्पिक तरीकों से अध्यापन ज़ारी रखा. अंतत: 1997 में उन्होंने देश छोड़ दिया.
अज़र के लिए लेखन प्रतिरोध का एक सशक्त माध्यम है. प्रतिरोध, चाहे दमनकारी शासन के प्रति हो या दमनकारी मां के प्रति.
Discussed book:
Things I’ve Been Silent About
By Azer Nafisi
Published by Random House Publishing Group
368 pages, Hardcover
US $ 27.00
राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिष्ट में मेरे पाक्षिक कॉलम किताबों की दुनिया के अंतर्गत 11 जनवरी, 2009 को प्रकाशित.
2 comments:
आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
LEKH PADHKAR BAHUT ACCHHA LAGA.... DANYAWAAD
Post a Comment