अब तक यह माना जाता रहा है कि 1962 के मिसाइल क्राइसिस के बारे में जितना लिखा जा सकता था, सब लिखा जा चुका है. लेकिन हाल ही में प्रकाशित वाशिंगटन पोस्ट के अनुभवी रिपोर्टर माइकेल डॉब्ब्स की किताब वन मिनट टु मिडनाइट: केनेडी, ख्रुश्चेव, एण्ड कास्त्रो ऑन द ब्रिंक ऑफ न्युक्लियर वार को पढकर लगता है कि काफी कुछ अब तक अनकहा और अनजाना ही था. बेलफास्ट, आयरलैण्ड में जन्मे माइकेल डॉब्ब्स का ज़्यादा समय साम्यवाद के पतन का अध्ययन करने में बीता है और उनकी एक किताब ‘डाउन विद बिग ब्रदर: द फॉल ऑफ सोवियत एम्पायर’ 1997 के पेन अवार्ड्स की अंतिम सूची तक पहुंच चुकी है.
अक्टूबर, 1962 में, जब शीत युद्ध अपने उफान पर था, संयुक्त राज्य अमरीका और सोवियत संघ क्यूबा में मिसाइलों की तैनाती के मुद्दे पर तेज़ी से आणविक संघर्ष की दिशा में बढते प्रतीत हो रहे थे. डॉब्ब्स ने अब तक अछूते अमरीकी, सोवियत और क्यूबाई दस्तावेजों, साक्ष्यों और चित्रों को खंगाल कर क्यूबाई मिसाइल संकट पर अब तक की सर्वाधिक आधिकारिक पुस्तक की रचना की है. कुछ चौंकाने वाले नए प्रसंग उजागर कर डॉब्ब्स यह बताने में पूरी तरह सफल होते हैं कि दुनिया महायुद्ध और महाविनाश के कितना नज़दीक पहुंच गई थी.
इस किताब में पहली बार हमें गुआण्टानामो स्थित अमरीकी नौसैनिक ठिकानों को तबाह कर डालने के ख्रुश्चेव के इरादों का दिल दहला देने वाला वृत्तांत पढने को मिलता है. यह भी पढने को मिलता है कि कैसे गलती से एक अमरीकी जासूसी वायुयान सोवियत संघ के आकाश में उडान भरने लगा था. क्यूबा में सी आई ए एजेण्ट्स की गतिविधियों और एक अमरीकी टी 106 जेट वायुयान की, जिसमें आणविक हथियार भरे थे, क्रैश लैण्डिंग का ब्यौरा भी हमें पढने को मिलता है.
डॉब्ब्स हमें व्हाइट हाउस और क्रेमलिन के भीतर ले जाते हैं और हम यह जान पाते हैं कि किस तरह विचारधारात्मक सन्देहों ने केनेडी और ख्रुश्चेव जैसे विवेकी और बुद्धिमान नेताओं के बीच की दूरियां बढा दीं और कैसे वे युद्ध की आशंका से व्यथित हुए. हम देखते हैं कि ये दोनों नेता आणविक युद्ध की भयावह हक़ीक़तों को पहचानते हैं, लेकिन दूसरी तरफ कास्त्रो हैं जो वैसे तो कभी भी पारम्परिक राजनीतिक सोच के प्रवाह में नहीं बहते, लेकिन एक मसीही सपना पाले रहते हैं कि उन्हें तो इतिहास ने एक खास मिशन के लिए चुना है. जैसे-जैसे नए प्रसंग उजागर होते हैं, डॉब्ब्स हमें क्यूबा की निगरानी कर रहे अमरीकी जहाजों के डैक्स पर ले जाते हैं, मियामी की गलियों की सैर कराते हैं जहां कास्त्रो विरोधी निर्वासित उनके तख्ता पलट की योजना बनाने में जुटे हैं.
डॉब्ब्स बताते हैं कि ख्रुश्चेव कास्त्रो को ‘एक बेटे की तरह’ प्यार करते थे, लेकिन साथ ही उनकी भावनात्मक स्थिरता के बारे में आशंकित भी रहते थे. इसीलिए वे कास्त्रो के हाथों में आणविक हथियार सौंपने को तैयार नहीं थे. और जहां तक कास्त्रो का सवाल है, उनकी पूरी रणनीति ही चुनौती पर आधारित थी. वे अपने शत्रुओं के समक्ष ज़रा भी कमज़ोर नहीं पडना चाहते थे. वे किसी मक़सद के लिए अपने देशवासियों को साथ लेकर मरने को तैयार थे. अगर मौका आता, वे क्यूबा की धरती पर अमरीकी घुसपैठ रोकने के लिए आणविक युद्ध शुरू करने की अनुमति देने में क़तई नहीं हिचकिचाते.
डॉब्ब्स ने यह किताब नई पीढी के पाठकों को 27 अक्टूबर 1962 के उस स्याह शुक्रवार की तथा उसकी पूर्ववर्ती घटनाओं की जानकारी देने के लिए लिखी है, जिसे इतिहासकार आर्थर एम श्लेसिंगर ने मानवीय इतिहास का सबसे खतरनाक क्षण कह कर पुकारा था. किताब अमरीकी, रूसी और क्यूबाई तीनों पक्षों के चरित्रों के मानवीय पक्ष को बखूबी उभारती है. इससे पता चलता है कि असल संकट केनेडी और ख्रुश्चेव के सीधे टकराव का नहीं था. संकट तो पैदा हुआ एक के बाद एक अप्रत्याशित रूप से घटित होने वाली घटनाओं के कारण. और फिर जब एक बार युद्ध के नगाडे बजने ही लग गए तो उन्हें रोकना किसी के भी वश में नहीं रह गया. उस स्याह शुक्रवार को, जब दोनों ही पक्षों को महसूस हुआ कि अब स्थितियों पर उनकी पकड नहीं रह गई है तो बजाय टकराने के, वे एक दूसरे की विपरीत दिशाओं में चले गए. केनेडी पर यह दबाव डाला जा रहा था कि वे प्रक्षेपास्त्रों के ठिकानों पर बमबारी करें और क्यूबा पर हमला कर दें. समझा जा सकता है कि अगर उन्होंने ऐसा कर दिया होता तो तो सोवियत संघ भी अमरीकी आक्रामक ताकतों का सामना अपने आणविक हथियारों से ज़रूर करता. फिर क्या हुआ होता, इसकी कल्पना ही हमें दहशत से भर देती है.
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Discussed book:
One Minute to Midnight: Kennedy, Khrushchev, and Castro on the Brink of Nuclear War
By Michael Dobbs
Published by: Knopf Publishing Group
Hardcover, 448 pages
US $ 28.95
राजस्थान पत्रिका के नगर परिशिष्ट जस्ट जयपुर में मेरे साप्ताहिक कॉलम 'वर्ल्ड ऑफ बुक्स' के अन्तर्गत 10 जुलाई, 2008 को प्रकाशित.हिन्दी चिट्ठों की जीवनधारा" border="0">
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