Thursday, April 3, 2008

एक डिज़ाइनर ने जो सीखा अपनी ज़िन्दगी में

ऑस्ट्रियन डिज़ाइनर और ग्राफिक आर्टिस्ट श्टेफन सेग्माइस्टर की ख्याति का थोडा-सा अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें डिज़ाइन की दुनिया का गॉड (खुदा) कहा जाता है. उनकी ख्याति उनकी रचनाशीलता के साथ-साथ दानशीलता और विनम्रता के लिए भी उतनी ही है. हाल ही में इन्हीं श्टेफन की एक नई किताब आई है थिंग्ज़ आई हेव लर्न-ड इन माई लाइफ सो फार. अपनी प्रस्तुति में विलक्षण होने के साथ ही यह किताब इस महान कलाकार के मनोजगत में झांकने का एक विरल अवसर प्रदान करती है.

इस किताब की जन्म-कथा भी दिलचस्प है. हुआ यह कि इस विलक्षण और अति व्यस्त डिज़ाइनर ने वर्ष 2000 में अपने काम से एक साल का अवकाश लिया. मकसद यह तलाश करना था कि वे अपनी अभिव्यक्ति को और सक्षम कैसे बना सकते हैं. “मैंने सोचा कि क्यों न फिल्म निर्माण में हाथ आजमाया जाए. फिर लगा कि मुझे उसी भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए जिसे मैं जानता हूं, और वह भाषा है डिज़ाइन की भाषा.” इसी अवकाश–काल में श्टेफन नियमित रूप से रोज़ डायरी भी लिखने लगे. कुछ दिनों बाद ही अपनी लिखी प्रविष्टियां पढते हुए श्टेफन को लगा कि यह तो कुछ ऐसा है जिसे औरों से भी साझा किया जा सकता है. इसी सोच की परिणति है यह किताब. वैसे, श्टेफन ने इस किताब के साथ ही इसी शीर्षक से एक विशाल प्रदर्शनी भी आयोजित की है जहां उन्होंने अपने कुछ सहयोगियों के साथ इस किताब में शामिल सूक्तियों को कलाकृतियों के रूप में प्रदर्शित किया है.

श्टेफन की इस किताब में ये बीस सूक्तियां हैं :
1. औरों की मदद करके मैं खुद की मदद करता हूं. 2. हिम्मत ने हमेशा मेरा साथ दिया है. 3. यह सोचना मूर्खतापूर्ण है कि भावी जीवन सुखद होगा. मुझे तो वर्तमान में जीना है. 4. सहायता समूह को संगठित करना आश्चर्यजनक रूप से सुगम है.
5. मिथ्याचरण सदा मेरे प्रतिकूल रहा है. 6. मैं जो भी करता हूं, उसका प्रतिफल मुझे ज़रूर मिलता है. 7. कल्पना करना बेहद मुश्किल है. 8. ड्रग्ज़ शुरू में तो अच्छी लगती हैं लेकिन फिर वे आप पर सवार हो जाती हैं. 9. वक़्त बीतने के साथ मैं हर बात का आदी होता चला गया, और फिर उनकी उपेक्षा करने लगा. 10. धन मुझे सुखी नहीं बनाता. 11. मेरे सपनों का कोई अर्थ नहीं है. 12. डायरी रखने से वैयक्तिक विकास में सहायता मिलती है. 13. अच्छा दीखने का प्रयास मेरी ज़िन्दगी को सीमित करता है. 14. भौतिक विलासिताओं का उपयोग अल्प मात्रा में ही किया जाना चाहिए. 15. चिंता करने से कोई समस्या हल नहीं होती. 16. शिकायत करना बेवक़ूफी है. या तो कुछ करो या फिर भूल जाओ. 17. हरेक यही सोचता है कि वह सही है. 18. अगर मुझे व्यावसायिक रूप से किसी नई दिशा की तलाश है तो बेहतर होगा कि पहले मैं खुद ही उसे आजमा कर देखूं. 19. कम अपेक्षाएं रखना उम्दा रणनीति है. 20. हर ईमानदार दिलचस्प होता है.

इस किताब को मैंने विलक्षण इसलिए कहा कि यह पारम्परिक अर्थ में किताब है ही नहीं. बेहतर तो यह होगा कि इसे किताब न कहकर कलाकृति कहा जाए. एक बक्सा और उसमें रखे कुछ पैम्फलेट. कोई जिल्दबन्द किताब नहीं जिसे कवर-टू-कवर पढा जाए. इन पैम्फलेट्स में इस किताब, इन सूक्तियों और सूक्तियों पर आधारित कलाकृतियों की सृजन गाथा अंकित है. मसलन सूक्ति क्रमांक 9 के बारे में यह बताया गया है कि न्यूयॉर्क में श्टेफन एक खिडकी में बैठे थे, उन्होंने अपने पांव बाहर लटका रखे थे. लोगों ने सोचा कि वे कूदने वाले हैं. पुलिस बुला ली गई और श्टेफन जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर भाग निकले. इसी तरह वे चौथी सूक्ति के लिए बताते हैं कि कैसे उन्होंने कुछ बेघरबार लोगों को महीने में दो बार राशन सामग्री सुलभ कराने का अभियान सफलतापूर्वक चलाया.

यह कलाकृति, या किताब, आप इसे जो भी नाम दें, उन सब बातों पर एक बार फिर से हमारा ध्यान खींचती हैं जो हमें अपने जीवन में महत्वपूर्ण लगती हैं. हो सकता है इनमें से कुछ बातों से हममें से कुछेक की असहमति हो, लेकिन ये बातें अंतत: सोच का एक प्रस्थान बिन्दु तो बनती ही हैं. इतना भी कम नहीं है.
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Discussed book:
Things I have Learned in My Life So Far
By Stefan Sagmeister, Daniel Nettle, Steven Heller, Nancy Spectar
Published by: Abrams
Paperback, 248 pages
US $ 24.00


राजस्थान पत्रिका के नगर परिशिष्ट जस्ट जयपुर में मेरे साप्ताहिक कॉलम वर्ल्ड ऑफ बुक्स के अंतर्गत 03 अप्रैल 2008 को प्रकाशित.







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3 comments:

रवि रतलामी said...

नायाब किताब लगती है. ढूंढ कर पढ़ना पड़ेगा लगता है...

संजय बेंगाणी said...

एक डिजाइनर किताब होगी...मजेदार

डॉ .अनुराग said...

लगता है पढ़ना पड़ेगा पर काफी बातो के सार मिल गए है