Thursday, March 6, 2008

बेहतर दुनिया के लिए

अगर दुनिया पर औरतों का राज हो जाए तो? व्हाइट हाउस की पूर्व प्रेस सचिव डी डी म्येर्स का खयाल है कि अगर ऐसा हो जाए तो सब कुछ बदल जाएगा. राजनीति अधिक सुघड हो जाएगी, व्यापार अधिक उत्पादक हो जाएगा और समुदाय भावना अधिक पुष्ट हो जाएगी. स्त्री सशक्तिकरण से दुनिया अधिक बेहतर हो जाएगी. इसलिए, कि औरतें मर्दों से भिन्न होती हैं.
1992 में बिल क्लिण्टन के राष्ट्रपति अभियान की प्रवक्ता, 93-94 में व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव, राजनीतिक विवेचक, मीडिया विश्लेषक और एन बी सी के द वेस्ट विंग कार्यक्रम की कंसल्टेण्ट के रूप में अपनी भूमिकाओं को स्मरण करते हुए म्येर्स यहां शीर्ष स्थानीय महिलाओं की महत्वपूर्ण किंतु प्राय: उपेक्षित और अवमूल्यित क्षमताओं का आकलन करती हैं. वे कहती हैं कि “स्त्रियां बेहतर सम्प्रेषक, बेहतर श्रोता होती हैं और आम सहमति कायम करने की अधिक योग्यता रखती हैं.” उनका खयाल है कि अधिक प्रतिस्पर्धी और निरंतर चिडचिडे होते जा रहे विश्व में स्त्रियां ही हैं जिनके पास समस्याओं को सुलझाने वाली योग्यता है और जो अपनी समझ का प्रयोग कर बेहतर माहौल तैयार कर सकती हैं.
पूरी किताब तीन खण्डों में विभक्त है: दुनिया पर औरतों का राज क्यों नहीं है, दुनिया पर औरतों का राज क्यों होना चाहिए, और औरतें कैसे दुनिया पर राज कर सकती हैं. म्येर्स अपनी बात का प्रारम्भ स्वानुभव से करती हैं. वे एक मार्मिक प्रसंग लाती हैं. जब वे दूसरी कक्षा में पढती थीं, उनकी कक्षा के बच्चों से पूछा गया कि बे बडे होकर क्या बनना चाहते हैं. उनके पास बैठे लडके ने कहा कि वह टी वी मैकेनिक बनना चाहता है. म्येर्स को लगा कि देखो, लडके को यह आज़ादी है कि वह जो चाहे बन सकता है, लेकिन बेचारी लडकी को तो मास्टरनी, नर्स या नन ही बनना पडेगा. म्येर्स अपने जीवन पर मां और दादी के सशक्त प्रभावों को भी बहुत आत्मीयता और कृतज्ञता से स्मरण करती हैं.

व्हाइट हाउस में प्रेस सचिव के पद पर पहुंचने वाली वे प्रथम महिला थीं. वे कहती हैं कि इस पद पर पहुंचने से उनकी ज़िन्दगी तो बदली, लेकिन दुनिया नहीं. तभी उन्हें लगा कि दुनिया को बदलने के लिए ज़रूरी है कि और अधिक औरतें शीर्ष पर पहुंचें. वहां उन्हें भेदभाव का सामना भी कम नहीं करना पडा. जब उनकी पदोन्नति हुई तो आर्थिक लाभ यह कहते हुए किसी अन्य पुरुष को दे दिया गया कि उसे तो एक परिवार का भरण पोषण भी करना है. म्येर्स को इस बात की गहरी तकलीफ है कि औरतों का मूल्यांकन उनके काम की बजाय उनके रंग-रूप के आधार पर अधिक किया जाता है. वे बताती हैं कि जब वे व्हाइट हाउस में थीं, प्रेस की दिलचस्पी राष्ट्रपति की राजनीति से हटकर उनके इयर रिंग्ज़, उनके मेक अप, कपडों, यहां तक कि केशों के बारे में भी कम नहीं थी. अमरीका में विद्यमान विषमताओं के बारे में वे तथ्य देकर बताती हैं. वहां स्त्री मतदाता पुरुष मतदाताओं से ज़्यादा हैं लेकिन सीनेट में केवल सोलह प्रतिशत महिलाएं हैं, देश के पचास गवर्नर्स में से केवल आठ स्त्रियां हैं, आज तक कोई महिला राष्ट्रपति नहीं बन सकी है. व्यापार जगत में भी स्थिति ऐसी ही है. फॉर्च्यून 500 कम्पनियों में महिला सी ई ओ केवल दो प्रतिशत हैं, कॉर्पोरेट ऑफिसर सोलह प्रतिशत. शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में भी यही स्थिति है. अमरीका से बाहर की दुनिया में भी हालत कमोबेश यही है.

औरतें दुनिया पर राज क्यों करें, इस सवाल का बहुत सीधा जवाब म्येर्स यह कहकर देती हैं कि औरतों के पास परानुभूति की क्षमता होती है. औरत ही बच्चे को जन्म देती है और स्वयं से पहले उसके या अन्य के बारे में सोचती हैं. म्येर्स कहती हैं कि अकेले इस गुण के दम पर ही महिलाएं बेहतर सिद्ध हो जाती हैं. दूसरी बात है महिलाओं की व्यावहारिक बुद्धि. म्येर्स कहती हैं कि औरतें एक दूसरे की मदद करती हुई उन सारे अवरोधों को हटा सकती हैं जो खुद उन्होंने महसूस किए हैं और वे बच्चों को यह सिखा कर बेहतर दुनिया बना सकती हैं कि कैसे अंतर को पहचानते हुए समानताओं का वरण किया जा सकता है. म्येर्स मानती हैं कि आज दुनिया में जो टकराव की संस्कृति विद्यमान है उसकी जगह आम सहमति की संस्कृति लाने में स्त्रियों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है.

खुद म्येर्स कहती हैं कि उन्होंने यह किताब न तो पुरुषों पर प्रहार करने के लिए लिखी है और न वे उनका महत्व कम करना चाहती हैं. वे तो मात्र इतना कहना चाहती हैं कि दुनिया बदल जाएगी, अगर हम बेटियों को भी बेटों-सा मान देने लग जाएं!

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Discussed book:
Why Women Should Rule the World
By Dee Dee Myers
Published by Harper
Pages 288, Hardcover.

राजस्थान पत्रिका के नगर परिशिष्ट 'जस्ट जयपुर' में मेरे साप्ताहिक कॉलम 'वर्ल्ड ऑफ बुक्स' में दिनांक 06 मार्च 2008 को प्रकाशित.








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4 comments:

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

दुर्गाजी आज सुबह भी पढ़ा था, एक अच्छी किताब के बारे में जानकारी देने के लिए शुक्रिया। उससे भी अच्छा लगा कि आप भी ऐसा सोचते हैं महिलाओं के राज करने से दुनिया बदले जाएगी।

anuradha srivastav said...

चलिये सर्वविदित सत्य को अब तो स्वीकारा जा रहा है।

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

धन्यवाद नीलिमा जी.
क्या इसमें भी कोई सन्देह है? हालांकि यहां बात एक किताब विशेष के सन्दर्भ से की ग अई है, लेकिन किताब से बाहर भी मैं तो यही सोच रखता हूं.

ghughutibasuti said...

पढ़कर अच्छा लगा । एक अध्यापिका ने कुछ दिन पहले फोन पर यही बात बताई । उसके बाद आए उससे कम योग्यता वाले अध्यापक का वेतन बढ़ा दिया गया । पूछने पर प्रधानाचार्य ने कहा कि तुम्हारे पति तो इतना कमाते हैं । अब इस वर्ष बिना प्रधानाचार्य को पता चले कि उसने शिकायत की है, उसे न्याय दिलाना है । प्रधानाचार्य को यह भी बताना है कि वेतन वृद्धि का आधार आवश्यकता नहीं योग्यता है । स्त्रियों के प्रति यह मानसिकता बहुत ही व्यापक है ।
घुघूती बासूती