क्या मात्र छह शब्दों में कोई अपने पूरे जीवन का सार प्रस्तुत कर सकता है? क्या इतने कम शब्दों में एक पूरी कहानी कही जा सकती है? कभी जाने-माने कथाकार अर्नेस्ट हेमिंग्वे के सामने भी यह कठिन काम करने की चुनौती पेश की गई थी. उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप महज़ छह शब्दों में एक पूरी कथा कह दी थी. वे छह शब्द थे : “फोर सेल: बेबी शूज़, नेवर वोर्न” (बच्चे के अनपहने जूते बिकाऊ हैं). वैसे, हमारे अपने महाकवि बिहारी का भी सबसे बडा कौशल इसी बात में माना जाता है कि उन्होंने दोहा जैसे छोटे छन्द में बहुत बडी बात कही थी.
2006 में ऑन लाइन कथा पत्रिका स्मिथ ने अपने पाठकों और लेखकों के सामने फिर से यही चुनौती पेश की. उसने लोगों से उनके संस्मरण आमंत्रित किए. लेकिन एक शर्त थी. शब्द सीमा थी छह शब्दों की. और अब इस किताब के रूप में उन्हीं प्रविष्टियों में से लगभग एक हज़ार प्रविष्टियां हमारे सामने लाई गई हैं. इन्हें 32 श्वेत श्याम रेखांकनों ने और भी आकर्षक बना दिया है. स्मिथ पत्रिका के संस्थापक सम्पादक लॉरी स्मिथ मेन्स जर्नल के लेख सम्पादक, और याहू के एग्ज़ीक्यूटिव सम्पादक रह चुके हैं और उनके लेख न्यूयॉर्क टाइम्स, वायर्ड, पॉप्युलर साइन्स आदि में छपते रहे हैं. राशेल फर्शाइज़र स्मिथ पत्रिका की संस्मरण सम्पादिका हैं और अनेक पत्रिकाओं में प्रकाशित होती हैं. इन दोनों द्वारा सम्पादित नॉट क्वाइट व्हाट आई वाज़ प्लानिंग: सिक्स वर्ड मेमोयर्स बाइ राइटर्स फेमस एण्ड ओब्स्क्योर एक ऐसी किताब है जो एक साथ ही दिलचस्प भी है, मज़ाकिया भी, विचारोत्तेजक भी और यदा-कदा हास्यास्पद भी.
इस किताब के लेखकों में (अगर उन्हें लेखक कहा जा सके, क्योंकि उनमें से हरेक के लिखे महज़ छह शब्द ही तो यहां हैं) प्रसिद्ध लेखक हैं, कम प्रसिद्ध लेखक हैं और आम पाठक भी हैं. इन सबको एक साथ पढने के बाद लगता है कि हमने मानवता की गंगा में डुबकी लगा ली है. यहां उल्लास भी है, अवसाद भी. निराशा है तो आशा भी. जितने भी मनोभाव हो सकते हैं वे सब यहां एक साथ सुलभ हैं. इतने अल्प शब्दों में जो बात कही गई है, उसका हिन्दी अनुवाद अपने आप में कम चुनौती पूर्ण नहीं है. अनुवाद में छह शब्द घट-बढ जाते हैं. नौ वर्षीया हाना डेविस ने लिखा, “कैंसर से अभिशप्त, दोस्तों से वरदानित” तो पत्रकार चक क्लोस्टरमेन ने आश्चर्य किया, “किसी ने परवाह नहीं की. फिर की. क्यों?” जैक नेल्सन ने कहा, “मैं अबभी दो केलिए कॉफी बनाता हूं” तो एक अन्य ने अपने खट्टे-मीठे प्रणय को इन शब्दों में अभिव्यक्त किया, “मिला सच्चा प्यार, दूसरे से शादी करके”. लेखक जॉयस केरॉल ओट्स ने इसी बात को कुछ दूसरे अन्दाज़ में कहा, “सबसे अच्छा बदला: तुम्हारे बिना बेहतर ज़िन्दगी” . नोरा एफ्रॉन ने सलाह दी, “जीवन का रहस्य: शादी करो इतालवी से” तो ए जे जेकब ने अपने पूरे जीवन को इस तरह बयान किया: “गंजा जन्मा, बाल उगे, फिर गंजा.”
किताब में केवल लेखकों के ही आत्म कथ्य नहीं हैं, जीवन के विविध क्षेत्रों के जाने-माने हस्ताक्षर यहां मौज़ूद हैं. विदूषक स्टीफेन कोलबर्ट कहते हैं, “मेरा खयाल है कि यह मज़ाकिया है” तो बिल क्वेरेंगेस्सर ने मज़ेदार उक्ति दी है, “सत्तर बरस, कम आंसू, बालदार कान”. अलाना शुबाख का निष्कर्ष है: “रक्षक ग्रंथि अनेक निराशाओं की जनक” तो सेबस्टियन जंगर का कहना है, “मैंने पूछा, उन्होंने बताया, मैंने लिखा.” अब बतायें, भला लेखन की इससे संक्षिप्त व्याख्या और कुछ भी हो सकती है? अगर यह अपर्याप्त लगे तो मार्था गार्वे की सलाह सुन लीजिए: “सेक्स पर लिखो, प्यार को सीखो”.
किताब को पढते हुए लगता है कि ज़िन्दगी को महज़ छह शब्दों में बयान करने की चुनौती दिलचस्प भी है, शिक्षाप्रद भी. यह किताब लगभग उसी समय प्रकाशित हुई है जब हमारे अपने देश भारत में नन्ही कार नैनो की चर्चा है. ये नैनो संस्मरण भी उससे कम आकर्षक नहीं हैं. कहना अनावश्यक है कि किताब को पढते-पढते हम भी अपने छह शब्द बुनने-चुनने लगते हैं. अगर मुझे भी मात्र छह शब्दों में इस किताब पर टिप्पणी करनी हो तो मेरे छह शब्द होंगे : “पढें, मज़ा लें, पढायें, बार-बार”.
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Discussed book:
Not Quite What I Was Planning: Six-Word Memoirs by Writers Famous and Obscure
By Larry Smith and Rachel Fershieiser
Published by Harper Perennial
Paperback, 240 Pages
US $ 12.00
2 comments:
डॉक्टर साहब समीक्षा पढ़कर अच्छा लगा
6 बराबर 665 वाह क्या खूब?
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