बुलेट ट्रेन का सपना साकार होने का
इंतज़ार करते और रेल मंत्री जी के बजट भाषण में सन 2020 तक हर आकांक्षी को कन्फर्म्ड
सीट मुहैया करवाने के आश्वासन से मुदित मेरे मन में एक और सपना देखने की तमन्ना अंगड़ाई लेने लगी
है. ख़ास बात यह कि मेरा यह सपना महज़ रेल तक सीमित नहीं है, हालांकि शुरुआत इसकी
रेल से सम्बद्ध एक ख़बर को पढ़कर ही हुई है. यह खबर उसी जापान से आई है जिसके साथ
भारत ने बुलेट ट्रेन के लिए एक करार पर दस्तखत किए हैं. रोचक बात यह है कि बहुत
तेज़ी से घटती जा रही जन्म दर, बढ़ती जा रही वृद्ध आबादी और सन 2060 तक अपनी एक
तिहाई आबादी के कम हो जाने के आसन्न संकटों ने जापान के सामने जो बहुत सारी
चुनौतियां खड़ी कर रखी हैं उनके चलते वहां
खाली घरों की तादाद निरंतर बढ़ती जा रही है, कामगार घटते जा रहे हैं और इस तरह की बातों का असर जिन पर पड़ रहा है उनमें से एक जापान की रेल
व्यवस्था भी है. बल्कि कड़वी सचाई तो यह है कि इन कारणों और जापान की बहुत कुशल
तीव्र गति की रेलों के फैलाव की वजह से ग्रामीण जापान की रेल व्यवस्था बुरी तरह से
चरमराने लगी है. बहुत सारे स्टेशन ऐसे हैं जहां यात्री भार इतना कम हो चुका है कि
उन्हें बन्द कर देने के सिवा और कोई विकल्प ही नहीं बचा है.
जापान के सुदूर उत्तर में एक
द्वीप है होक्काइडो, जिसके निकट एंगारु नामक एक कस्बा है. पिछले कुछ बरसों में
यहां से गुज़रने वाली कम से कम बीस रेलें बन्द की जा चुकी हैं. इसी एंगारु कस्बे के नज़दीक के एक रेल्वे स्टेशन
कामी-शिराताकी को भी बन्द करने की प्रक्रिया तीन बरस पहले शुरु कर दी गई थी. लेकिन
इसी प्रक्रिया के दौरान जापानी रेल
अधिकारियों का ध्यान इस बात की तरफ़ गया कि
पिछले कुछ समय से एक यात्री लगभग नियमित रूप से इस स्टेशन से रेल में चढ़ता
और वहीं उतरता है. अधिक पड़ताल की गई तो पता चला कि वह इकलौता यात्री और कोई नहीं एक स्कूली छात्रा है जो इस स्टेशन से
रेल में बैठकर अपने स्कूल जाती है और इसी रेल से शाम को लौट आती है. जब जापानी रेल अधिकारियों
को यह बात पता चली तो उन्होंने क्या किया? उन्होंने इस स्टेशन और इस रेल को बन्द
करने के अपने निर्णय को स्थगित कर दिया. इसलिए स्थगित कर दिया ताकि वो छात्रा निर्बाध रूप से स्कूल जा सके. जापानी रेल
अधिकारियों ने फैसला किया कि यह रेल मार्च 2016 में वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक
चलती रहेगी. 2016 को इसलिए चुना गया ताकि तब तक वो लड़की अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर लेगी.
और जैसे इतना ही पर्याप्त न हो, जापान के रेल अधिकारियों ने एक और बात
की. इस रेल का टाइमटेबल उस छात्रा के स्कूल के टाइमटेबल के अनुरूप बनाया जाता है. अगर उसका स्कूल किसी
दिन बन्द है तो उस दिन रेल नहीं चलती है और अगर किसी दिन जल्दी छुट्टी होती है तो
उस दिन रेल भी जल्दी आती है. इसे कहते हैं प्रशासन की संवेदनशीलता. वैसे तो अपने
देश में भी प्रभावशाली जन के लिए इस तरह की ‘संवेदनशीलता’ की ख़बरें समाचार
माध्यमों में आती ही रहती हैं, लेकिन एक अनाम-सी स्कूली छात्रा के लिए इस तरह का निर्णय करने की यह अनूठी घटना
हम सबके मन में एक सपना तो जगाती ही है. शायद इसी तरह के सपने की बात राष्ट्रपिता
बापू ने भी हर आँख का आंसू पोंछने की तमन्ना ज़ाहिर करते हुए की थी.
जापान के रेल विभाग के इस प्रशंसनीय फैसले को उचित ही पूरी दुनिया में
सराहा गया है. एक चीनी आधिकारिक प्रसारक की फेसबुक पोस्ट में जब यह बात सामने आई
तो तुरंत ही इसे 5700 बार साझा किया गया और बाईस हज़ार लोगों ने इसकी सराहना की.
हरेक ने इस बात की खुले मन से सराहना की
ही. एक व्यक्ति ने वहां जो लिखा, वह बहुत महत्वपूर्ण है. उसके शब्द हैं: “भला कौन
होगा जो ऐसे देश के लिए जहां की सरकार एक अकेले
के लिए इतना करने को तैयार हो, अपने प्राण तक न्यौच्छावर नहीं कर देना चाहेगा? सुशासन का असल रूप यही तो
है कि वो सीधे ग्रासरूट्स तक पहुंचे. उसके
लिए हर नागरिक का महत्व होना चाहिए. कोई
बच्चा तक पीछे नहीं छूटना चाहिए!”
हम जापान से बुलेट ट्रेन ले रहे हैं, तो उम्मीद करनी चाहिए कि उसके
साथ जापानी रेल प्रशासन की सुशासन की यह
भावना भी स्वत: चली आएगी.
जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 01 मार्च, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.
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