हमें जो सहजता से सुलभ होता रहता है हम
उसकी महत्ता से अनजान रहते हैं. हम शायद कभी यह सोचते भी नहीं हैं कि अगर कल को इस
सुलभता पर कोई संकट आ गया तो हमारा हश्र क्या होगा. इससे और ज़्यादा ख़तरनाक बत यह
है कि अपनी आश्वस्तियों के चलते हम ख़तरों की आहटों, बल्कि चेतावनियों तक को अनसुना करते जाते हैं. अब
यही बात देखिये ना कि भारत के नीति आयोग द्वारा ज़ारी की गई कम्पोज़िट वॉटर मैनेजमेण्ट इंडेक्स में दो टूक शब्दों में कहा गया है कि भारत
तेज़ी से भयंकर जल संकट की तरफ़ बढ़ रहा है. इस रिपोर्ट के अनुसार सन 2030 के आते-आते
आधा भारत पेयजल के लिए तरसने लगेगा. इससे भी ज़्यादा चिंताजनक बात यह है कि सन 2020
तक भारत के इक्कीस बड़े शहरों में, जिनमें दिल्ली, मुम्बई, हैदराबाद और
चेन्नई जैसे महानगर भी शामिल हैं, भूजल ख़त्म हो चुका होगा. और वैसे हालात तो अभी भी
कोई ख़ास अच्छे नहीं हैं. हर बरस कोई दो
लाख लोग सुरक्षित पेय जल के अभाव में दम तोड़ देते हैं. लेकिन हम हैं कि इन सारी
बातों की अनदेखी कर बड़ी निर्ममता से पानी को बर्बाद करते रहते हैं. हमें जैसे कल
की कोई फिक्र नहीं है.
लेकिन इसी दुखी करने वाले परिदृश्य
के बीच महाराष्ट्र के पुणे शहर से जो खबर
आई है वह अंधेरे में प्रकाश की किरण की
मानिंद आह्लदित कर देने वाली है. ख़बर यह
है कि पुणे के बहुत सारे रेस्तराओं ने अपने ग्राहकों को पानी के आधे भरे हुए गिलास
देना शुरु कर दिया है, और वह भी मांगने पर. हां, ज़रूरत होने पर ग्राहक और
पानी मांग सकता है और वह उसे दिया भी जाता है. न केवल इतना, ग्राहक गिलासों
में जो पानी छोड़ देते हैं उसे भी रिसाइकल करके पौधों को सींचने या सफाई के काम में
इस्तेमाल कर लिया जाता है. पुणे के रेस्टोरेण्ट एण्ड होटलियर्स असोसिएशन के
अध्यक्ष गणेश शेट्टी बताते हैं कि अकेले उनके कलिंगा नामक रेस्तरां में हर रोज़
करीब आठ सौ ग्राहक आते हैं और उन्हें आधा गिलास पानी देकर वे रोज़ आठ सौ लिटर पानी
बचाते हैं. पुणे के ही एक अन्य रेस्तरां के मालिक ने अपने यहां लम्बे गिलासों की
बजाय छोटे गिलास रखकर पानी बचाने के
अभियान में सहयोग दिया है. बहुत सारे होटल वालों ने अपने शौचालयों को इस
तरह से बनवाया है कि उनमें पानी की खपत पहले से कम होती है. अनेक प्रतिष्ठानों ने
वॉटर हार्वेस्टिंग प्लाण्ट लगवा लिये हैं
और अपने कर्मचारियों को कम पानी इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित कराया है. गणेश
शेट्टी की इस बात को सबने अपना मूल मंत्र बना लिया है कि पानी की एक एक बूंद कीमती
है और अगर हमें अपने भविष्य को बचाना है तो अभी से सक्रिय होना होगा.
मुम्बई के पास स्थित पुणे
के निवासियों ने कोई दो बरस पहले पहली दफा जल संकट की आहटें सुनी थी. तब फरवरी और
मार्च के महीनों में वहां जल आपूर्ति आधी कर दी गई थी, और एक दिन छोड़कर पानी
सप्लाई किया जाता था. तभी सरकार की तरफ से जल के उपयोग-दुरुपयोग के बारे में कड़े
निर्देश ज़ारी कर दिये गए थे और लोगों को सलाह दी गई थी कि वे अपनी अतिरिक्त जल ज़रूरतों के लिए बोरवेल भी खुदवाएं. इन दो महीनों
के लिए शहर में तमाम निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई थी, और कार गैरेज वालों को कहा
गया था कि वे केवल जल रहित यानि सूखी सर्विसिंग करें. होटलों के स्विमिंग पूल बंद
कर दिये गए,
वहां
होने वाले लोकप्रिय रेन वॉटर आयोजनों को प्रतिबंधित कर दिया गया और यहां तक हुआ कि
होली पर भी पानी का इस्तेमाल नहीं किया गया. इस तरह पानी के हर दुरुपयोग को रोकने
की कोशिश की गई और जिसने भी निषेधों का उल्लंघन किया उसे भारी जुर्माना भरना पड़ा. फिर
अक्टोबर से स्थायी रूप से पानी की दस प्रतिशत कटौती लागू कर दी गई. हालांकि पिछले बरस पुणे में ठीक ठाक बारिश हुई थी फिर भी कुछ तो मौसम में आए बदलाव, कुछ बढ़ते शहरीकरण
और कुछ पानी बर्बाद करने की हमारी ग़लत आदतों की वजह से अब फिर वहां जल संकट के
गहराने की आहटें सुनाई देने लगी हैं. लग रहा है कि हालात पहले से भी बदतर हो गए हैं, इसलिए पानी बचाने के लिए
और अधिक सक्रियता ज़रूरी हो गई है. इसी क्रम में वहां के होटलों और रेस्तराओं ने यह
सराहनीय क़दम उठाया है. वैसे, पुणे देश का एकमात्र ऐसा शहर नहीं है जहां जल संकट
इतना सघन हुआ है. पिछले बरस शिमला से भी ऐसी ही ख़बरें आई थीं, और इन समाचारों ने
भी सबका ध्यान खींचा था कि उद्यान नगरी बेंगलुरु में भी पानी की कमी हो रही है. ऐसे में पुणे के
होटल व रेस्तरां व्यवसाइयों की इस पहल का न केवल स्वागत, बल्कि अनुकरण भी किया जाना
चाहिए.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 18 दिसम्बर, 2018 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.