Tuesday, September 13, 2016

ज़रा रुकें, सोचें, आत्महत्या कोई विकल्प नहीं

हर बरस करीब आठ लाख लोग आत्महत्या कर हमारी इस बेहद खूबसूरत दुनिया को अलविदा कह देते हैं. यानि हर चालीसवें सेकण्ड कोई न कोई अपने हाथों अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेता है. चिंता की बात यह भी है कि ये आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं. लगभग पच्चीस  बरस पहले हर बरस सात लाख लोग ही आत्महत्या कर रहे थे.  आत्महत्या की ये घटनाएं वैसे तो पूरी दुनिया में होती हैं लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ)  का कहना है कि तमाम आत्महत्याओं में से तीन चौथाई निम्न और मध्य आय वर्ग वाले देशों में होती हैं. इन देशों में आत्महत्या को मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण माना जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के ही पास उपलब्ध 2012 के आंकड़ों के अनुसार पूरी दुनिया में मौत के कारणों में आत्महत्या पन्द्रहवें स्थान पर है. यह बात भी ध्यान  देने काबिल है कि आत्महत्या के लिहाज़ से  15 से 29 वर्ष के बीच के युवा सर्वाधिक असुरक्षित माने जाते हैं. वैसे कुछ देशों में सत्तर पार के लोगों में यह प्रवृत्ति ज़्यादा पाई गई है.  

आत्महत्या के सन्दर्भ में सबसे ज़्यादा चिंता की बात यह है कि  अगर किसी परिवार का कोई सदस्य आत्महत्या करता है तो उसका दुष्प्रभाव और दुष्परिणाम पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है. कई बार तो ये प्रभाव इतने गहरे होते हैं कि निकट के परिजन इनसे कभी उबर ही नहीं पाते हैं. अमरीका की एक युवती डोरोथी पॉ ने अपने पिता की, जो द्वितीय विश्व युद्ध के एक वीर सेनानी थे, आत्महत्या का ज़िक्र करते हुए बताया था कि जब उनके पिता ने अपनी जान ली, वे महज़ नौ साल की थी. लेकिन वह क्षण जैसे उनके बचपन का आखिरी क्षण बनकर रह गया. उसके बाद उन्हें कभी भी सुरक्षित होने का एहसास नहीं हो सका. उन्हें लगने लगा जैसे पूरी दुनिया ही असुरक्षित  जगह है. डोरोथी की मां ने हर मुमकिन प्रयास किया कि उनके बच्चे अपने पिता को एक वीर के रूप में याद रखें, और इसलिए वे हमेशा इस बात पर पर्दा डालती रहीं कि उनके पिता की मौत कैसे हुई. लेकिन बाद में डोरोथी को महसूस हुआ कि यह बात उनके अकेलेपन की बड़ी वजह भी बन गई. जिस भी घर परिवार का  कोई सदस्य आत्महत्या करता है, वहां इसी अनुभव की पुनरावृत्ति होती है.

विशेषज्ञों का विचार  है कि आत्महत्या एक प्रकार का मानसिक रोग है. वे इसकी तुलना कैंसर की चौथी अवस्था से करते हैं. अमरीका की मेंटल हेल्थ के अध्यक्ष पॉल जियोनफ्रिडो  का कहना है कि मानसिक रुग्णता वाले बहुत सारे लोगों के लिए तो आत्महत्या चौथी अवस्था की आखिरी घटना ही होती है, और सच तो यह है कि यह वास्तव में जीवन की भी आखिरी घटना  होती  है. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह भी कहना है कि आत्महत्या एक ऐसा रोग है जिसे अगर सही समय पर पहचान लिया जाए तो रोका भी जा सकता है. संगठन ने अपनी वेबसाइट पर बताया है कि अगर सही समय पर अवसाद और मदिरापान से जुड़ी गड़बड़ों की पहचान कर ली जाए और उनका  उपचार कर दिया जाए तो बहुत हद तक आत्महत्याओं को रोका जा सकता है. लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं है. जिन्होंने कभी आत्महत्या का प्रयास किया है, उनके साथ नियमित सम्पर्क बनाए रखना और उन्हें सामुदायिक सम्बल प्रदान करना भी बेहद ज़रूरी है. संगठन ने बहुत बलपूर्वक यह भी कहा है कि समाज में प्रचलित इस धारणा को बदला जाना बहुत आवश्यक है कि जो लोग आत्महत्या करते हैं वे कायर होते हैं. 

अभी हमने जिन डोरोथी पॉ का ज़िक्र किया, सन 2012 में उनके पच्चीस वर्षीय बेटे ने भी खुद को गोली मारकर आत्महत्या  कर ली. माना जाता है कि अमरीका में होने वाली आधी आत्महत्याएं तो गोली से ही होती हैं, और इसलिए वहां इस बात के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं कि कैसे इन आग्नेयास्त्रों के उपयोग को अधिक सुरक्षित बनाया जाए. पहले अपने पिता और फिर अपने पुत्र की आत्महत्या ने डोरोथी पॉ को प्रेरित  किया है कि  वे लोगों को आत्महत्या करने से रोकने के अभियान में सक्रियतापूर्वक भाग लें. उनका कहना है, “अगर हमें लगता है कि कोई परेशानी में है तो हमें  उससे सीधे ही यह सवाल करना चाहिए कि कहीं उसके मन में आत्महत्या करने का विचार तो नहीं है. बेशक यह सवाल पूछना सुखद  नहीं  होगा, लेकिन सच मानिये किसी की शवयात्रा में शामिल होने की तुलना में तो यह सवाल पूछना सुखद ही होगा. और यही वजह है कि मैं लोगों से आत्महत्या के बारे में बातचीत करती हूं. लोगों को मालूम होना चाहिए कि इसे रोका जा सकता है.” 

(दस सितम्बर को वर्ल्ड सुइसाइड प्रिवेंशन डे मनाया जाता है!)
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 13 सितम्बर, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.