Tuesday, November 20, 2018

यह देश तो जैसे स्त्रियों का नरक है!


अपने देश में स्त्रियों की स्थिति पर प्राय: चर्चा होती है और जब देश के किसी भी भाग से उनके साथ  हुए किसी दुर्व्यवहार का समाचार आता है,  हम आक्रोश से भर उठते हैं और मन ही मन कामना करते हैं कि भविष्य में ऐसा न हो. हम यह भी जानते हैं कि आज़ादी के बाद से देश में स्त्रियों की स्थिति में बहुत बदलाव आया है और वे सभी क्षेत्रों में अपनी योग्यता का लोहा मनवा रही हैं. देश के सर्वोच्च पदों पर स्त्रियां आसीन रह चुकी हैं और आज जीवन का शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा हो जहां उनकी सम्मानजनक पहुंच न हो. लेकिन जब यह जानने को मिलता है कि हमारी इसी दुनिया में बहुत सारे देश ऐसे भी हैं जहां स्त्रियां आज भी नारकीय जीवन जीने को अभिशप्त हैं, तो हम गहरे संताप में डूब जाते हैं. ऐसा ही एक अभागा  देश है पापुआ न्यूगिनी. दक्षिणी पश्चिमी प्रशांत महासागर क्षेत्र में स्थित द्वीपों के इस समूह की आबादी बहुत कम है. मात्र साठ लाख. 1975 में ऑस्ट्रेलिया से आज़ादी प्राप्त  करने वाले विभिन्न समुदायों, जनजातियों और परिवारों वाले इस राष्ट्रमण्डलीय देश में गज़ब की विविधता है. यह तथ्य किसी को भी चौंका सकता है कि यहां करीब आठ सौ भाषाएं बोली जाती हैं और यह संख्या दुनिया के किसी एक देश में बोली जाने वाली भाषाओं  में सबसे बड़ी है. इस देश की  विविधता का एक और आयाम यह है कि एक गली में जो नियम और परम्पराएं चलन में है, पास वाली दूसरी गली में उससे नितांत भिन्न रीति रिवाज़ चलन में होते हैं. लेकिन विविधताओं भरे देश में एक मामले में ग़ज़ब की एकरूपता  भी  है. और वह एक मामला है स्त्रियों के साथ व्यवहार का. जब इस देश के महिलाओं के एक आश्रय स्थल की काउंसलर शैरॉन साइसोफा यह कहती हैं कि “यहां स्त्री को पीटना उतना ही सहज स्वाभाविक है जितना किसी पेड़ से आम तोड़ लेना, दोनों ही कामों में कोई पैसा  नहीं लगता  है”  तो वे एक कड़वी सच्चाई को शब्द दे रही होती हैं.

संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट बताती है कि इस देश की दो तिहाई स्त्रियां अपने सहचर के दुर्व्यवहार का शिकार हैं. एक अन्य अध्ययन में इस देश के एक बड़े भू भाग के कम से कम साठ प्रतिशत पुरुष सामूहिक बलात्कार के दुष्कृत्य में शामिल होने की बात स्वीकार कर चुके हैं. इस देश का अधिक जनसंख्या वाला उत्तरी भूभाग स्त्रियों के लिए भी अधिक असुरक्षित है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के  एक सर्वेक्षण में वहां की अस्सी फीसदी महिलाएं यह बात मान चुकी हैं कि वे अपने पतियों की हिंसा का शिकार हुई हैं. इन तथ्यों के बाद इस बात को न मानने की कोई वजह ही नहीं रह जाती है कि पापुआ न्यूगिनी के उत्तरी क्षेत्र  में महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा की दर दुनिया में सबसे ज़्यादा है. कोढ़ में खाज यह कि स्त्रियों के प्रति दुर्व्यवहार को रोकने के लिए बनाने गए नियम-कानून बहुत अस्पष्ट हैं. अभी हाल तक तो इस देश में स्त्रियों को पति की सम्पत्ति ही माना जाता था और जैसे ही दुल्हन का मूल्य तै होता था, उसका भावी पति कानूनी  रूप से उसे पीटने या उसके साथ बलात्कार करने का हक़दार हो जाता  था. कई बरसों के संघर्ष और प्रतिरोध के बाद 2013 में सरकार ने एक पारिवारिक संरक्षण कानून  पास कर पत्नियों और बच्चों को पीटने पर प्रतिबंध लगाया. इसी कानून की अनुपालना  के लिए पुलिस में भी एक विभाग बनाया गया और सारे देश में पीड़ित महिलाओं के लिए सरकार द्वारा वित्त पोषित संरक्षण गृह बनाए गए. लेकिन इसके बाद सब कुछ गुड़ गोबर हो गया. भयंकर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के चलते इन सबको पैसा मिलना बंद हो गया और हालत यह हो गई है कि अगर कोई घरेलू विवाद में बीच बचाव के लिए पुलिस को बुलाता है तो पुलिस कहती है कि हमारे पास इतना बजट ही नहीं है कि वहां आने के लिए गाड़ी में ईंधन डलवा सकें. संरक्षण गृह भी धनाभाव में बदहाल पड़े हैं.

यह जानकर आश्चर्य और क्षोभ होता है कि इस देश की संसद में एक भी महिला नहीं है. तलाक के कानून बेहद जटिल और कठोर हैं और हालत यह है कि तलाक लेने के लिए स्त्रियों को खुद अपना मोल चुकाना पड़ता है. पुरानी और सड़ी गली परम्पराएं अब भी इस देश को जकड़े हुए हैं. लोग जादू टोनों में गहरा विश्वास रखते हैं, और हालत यह है कि अगर किसी परिवार में कोई बच्चा या बड़ा  बीमार हो जाए तो उसका दोषारोपण पास में रहने वाली किसी स्त्री पर कर उसकी हत्या तक कर  दी जाती है. लेकिन इन विकट स्थितियों में भी इस देश के कुछ नागरिक और संगठन हालात को बेहतर बनाने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, दिनांक 20 नवम्बर, 2018 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.