सामान्यत: हम सोचते हैं कि
अगर हमें खूब सारा धन मिल जाए तो हमारे सारे कष्ट दूर और सारे सपने साकार हो जाएंगे.
निश्चय ही ब्रिटेन की सुश्री जेन पार्क ने
भी सन 2013 में अपनी ज़िंदगी का पहला लॉटरी टिकिट खरीदते वक़्त ऐसा ही सोचा होगा.
लेकिन देश की सबसे कम उम्र यूरोमिलियन्स
विजेता बनने के बाद महज़ तीन-चार बरसों में उनकी सोच इतनी बदल चुकी है कि अब तो वे
उस लॉटरी कम्पनी पर कानूनी कार्यवाही तक
करने के बारे में सोच रही हैं जिसने उन्हें रातों रात इतना अमीर बना दिया. जेन
पार्क को इस लॉटरी में एक लाख मिलियन पाउण्ड यानि भारतीय मुद्रा में क़रीब साढ़े आठ करोड़ रुपये मिले थे. स्वभावत: इन
पैसों से उन्होंने प्रॉपर्टी खरीदी, अपनी खूबसूरती बढ़ाने पर खासा खर्चा
किया, एक महंगी गाड़ी खरीदी और जमकर सैर सपाटा किया. कल तक जो
चैरिटी वर्कर थी, वह अपने आप को डेवलपर कहने लगीं. उनके जीवन
में भौतिक साधनों की इफ़रात हो गई. लोग उन्हें देखते तो ठण्डी आहें भरते और कहते कि
काश! हमारे पास भी उतना पैसा हो जितना इस लड़की के पास है. लेकिन खुद जेन पार्क
बहुत जल्दी इस वैभव से इतनी त्रस्त हो गईं कि उन्हें लगने लगा कि भले ही उनके पास भौतिक साधनों की भरमार हो, उनका जीवन तो एकदम रिक्त है. इस वैभव से दुखी होकर वे तो यहां तक कह बैठीं
कि “मेरा खयाल था कि यह राशि मिल जाने से मेरी ज़िंदगी दस गुना बेहतर हो जाएगी,
लेकिन हक़ीक़त यह है कि यह दस गुना बदतर हो गई है. कितना अच्छा होता
कि मैंने यह लॉटरी जीती ही ना होती और मेरी जेब एकदम खाली होती!”
जेन ने जब यह लॉटरी जीती
तब उनकी उम्र सत्रह बरस थी. अब इक्कीस बरस की हो चुकने और ऐसी अमीरी से उपजे खूब
सारे तनाव झेल चुकने के बाद उन्हें लगता है कि ब्रिटेन में लॉटरी का टिकिट खरीदने
के लिए न्यूनतम उम्र सोलह बरस है और यह बहुत कम है. इसे कम से कम अठारह बरस तो
होना ही चाहिए. लेकिन यह निर्णय तो वहां
की संसद करती है. जेन पार्क ने सन 2015 में अपने बॉय फ्रैण्ड मार्क स्केल्स को ‘स्नेक’
कहते हुए त्याग दिया. वजह यह रही कि उनके दोस्तों ने उन्हें बताया
कि उसकी एकमात्र दिलचस्पी उनकी सम्पत्ति में थी. इसके बाद वे अपने एक और बॉय
फ्रैण्ड कॉनोर जॉर्ज से भी अलग हो गईं. यह किस्सा खासा मनोरंजक किंतु त्रासद भी
है. जब जॉर्ज इबिज़ा में किशोरों के एक हॉलिडे पर जाने लगा तो जेन ने उसे हिदायतों की एक सूची थमाई जिसके अनुसार उसे हॉलिडे में
किसी भी लड़की से बात नहीं करनी थी और उस द्वीप पर छुट्टियां मनाते हुए हर वक़्त जेन
का डिज़ाइन किया हुआ वो टी शर्ट पहने रहना था जिस पर इस कन्या की तस्वीर बनी हुई
थी. समझा जा सकता है कि ये बातें जेन के असुरक्षा
बोध की परिचायक थीं. अलगाव तो होना ही था. उसके बाद से वे ऐसे बॉय फ्रैण्ड की तलाश
में ही हैं जिसकी दिलचस्पी उनके वैभव में
न हो. डिज़ाइनर वस्तुओं को खरीदते-खरीदते वे ऊब चुकी हैं और अमरीका और मालदीव जैसी चमक-दमक भरी जगहों और बेहद महंगे
रिसोर्ट्स में छुट्टियां बिताने से अब वे
इतनी तंग आ चुकी हैं कि साधारण और सस्ती जगहों पर छुट्टियां मनाने के लिए तरसने
लगी हैं.
इस सारे किस्से का एक किरदार
वो लॉटरी कम्पनी भी है जिसने जेन पार्क के जीवन में इतनी उथल-पुथल पैदा की है. इस
प्रसंग में केमलोट समूह नामक इस लॉटरी कम्पनी के एक प्रतिनिधि का बयान भी
ध्यान देने योग्य है. अपनी सफाई पेश करते
हुए उन्होंने कहा है कि सुश्री जेन पार्क के इनाम जीतने के फौरन बाद कम्पनी ने एक
स्वतंत्र वित्तीय और विधिक पैनल का गठन किया और जेन का सम्पर्क उन्हीं के आयु वर्ग
के अन्य इनाम विजेताओं से करवाने और पारस्परिक अनुभवों के आदान-प्रदान का प्रबंध
किया. कम्पनी की तरफ़ से यह भी बताया गया कि जेन के विजेता बनने के बाद से कम्पनी
लगातार उनसे सम्पर्क बनाए हुए है और उन्हें अपना संबल प्रदान करने के लिए तत्पर
है. लेकिन इस बात का फैसला तो अंतत: विजेता को ही करना होता है कि उन्हें कोई
सहयोग लेना है या नहीं लेना है. बावज़ूद इस बात के कम्पनी उन्हें सहयोग देने को
सदैव प्रस्तुत रहेगी. लॉटरी के औचित्य अनौचित्य पर तमाम बातों से हटकर कम्पनी के इस सोच की तो प्रशंसा
की ही जानी चाहिए.
सुश्री जेन पार्क का यह
वृत्तांत उन लोगों के लिए आंखें खोल देने
वाला हो सकता है जो मान बैठे हैं कि जीवन की सारी समस्याओं का एकमात्र हल पैसा है.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर अंतर्गत मंगलवार, 21 फरवरी, 2017 को प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.