Tuesday, June 12, 2018

बहुत तेज़ी से नकदी रहित होता जा रहा है स्वीडन


भारतीय अर्थव्यवस्था को नकदी विहीन बनाने के सरकारी प्रयासों पर ज़ारी बहस-मुबाहिसे के बीच यह जानना दिलचस्प होगा कि स्वीडन बहुत तेज़ी से नकदी रहित  अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ रहा है और अनुमान लगाया गया है कि सन 2030 तक यह देश पूरी तरह नकदी मुक्त हो जाएगा. स्वीडन में नकदी विहीन होने की शुरुआत सन 2005 में हुई थी जब वहां की सरकार ने कुछ बैंकों को नकदी और भुगतान की व्यवस्थाओं के बारे में निर्णय करने का दायित्व सौंपा था. इसी क्रम में सन 2012 में वहां के केंद्रीय बैंक, रिक्सबैंक ने बैंकनोट्स का एक नया डिज़ाइन लागू किया लेकिन वह बहुत सारे स्वीडन वासियों को पसंद नहीं आया और उन्होंने अपने पुराने तथा चलन से बाहर हो चुके नोट तो बैंक में जमा करा दिये लेकिन उनके बदले में ये नए नोट नहीं लिये. उसी बरस दिसम्बर में वहां के छह बड़े बैंकों ने स्विश नाम से एक भुगतान व्यवस्था लागू की जिसका उपयोग कर लोग तुरंत धन का आदान प्रदान कर सकते थे. उसके बाद से वहां नकदी विहीन लेन देन में बहुत तेज़ी आई और अब  हालत यह है कि पिछले बरस स्वीडन में कुल भुगतान के मात्र एक प्रतिशत में ही नकदी का प्रयोग हुआ. वहां की बसों में कई बरस पहले से सिक्कों और नोटों का प्रयोग होना बंद हो चुका है और अब तो ऐसे बैंकों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है जिनके बाहर स्थानीय भाषा में यह अंकित होता है कि यहां नकदी उपलब्ध नहीं है. छोटी-छोटी कॉफी शॉप्स तक में यह लिखा मिलने लगा है कि हमारी दुकान नकदी मुक्त है, या यहां केवल क्रेडिट कार्ड स्वीकार किये जाते हैं. देश के लोकप्रिय पर्यटन स्थलों पर भी प्रवेश शुल्क केवल कार्ड्स से ही स्वीकार किया जाने लगा है. एक व्यक्ति  ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया है कि उसने देखा कि गुब्बारे बेचने वाला भी कार्ड से भुगतान प्राप्त कर रहा था. स्वीडन के धार्मिक स्थल भी तेज़ी से नकदी विहीन होते जा रहे हैं.

हमारे लिए यह विशेष रूप से ग़ौर तलब है कि स्वीडन के इतनी तेज़ी से नकदी विहीन होते जाने के मूल में कई बातें हैं. पहली तो यह कि उस देश का आकार बहुत छोटा और जनसंख्या बहुत कम है. इस कारण वहां कोई भी नई व्यवस्था आसानी से चलन में लाई जा सकती है. वहां का क्षेत्रफल मात्र  447,435 वर्ग किलोमीटर  और जनसंख्या लगभग 99 लाख है. देश में भ्रष्टाचार बहुत ही कम है और वहां के नागरिकों को अपनी बैंकिंग और प्रशासनिक व्यवस्था पर पूरा भरोसा है. ज़्यादातर लोगों को इस बात की भी कोई आशंका नहीं है कि उनकी सरकार उनके लेन-देन के मामले में अनावश्यक रुचि लेगी. लोगों का शैक्षिक स्तर भी अच्छा है इसलिए नई व्यवस्था उनके लिए असुविधाजनक नहीं साबित  होती है. स्वीडन तकनीकी रूप से भी काफी उन्नत है और वहां इण्टरनेट की सुलभता, पहुंच और गति बहुत उम्दा है.

लेकिन जहां स्वीडन के अधिकांश नागरिकों को इस नकदी विहीनता से कोई आपत्ति नहीं है, वहां की आबादी का एक छोटा-सा हिस्सा  विभिन्न कारणों से इस नकदी विहीनता के विरोध में आवाज़ उठाने लगा है. आश्चर्य की बात यह कि विरोध के ये स्वर लगातार तेज़ होते जा रहे हैं. स्वीडिश नेशनल पेंसनर्स असोसिएशन ऐसा ही एक समूह है जो अपने साढ़े तीन लाख सदस्यों की तरफ से इसके खिलाफ आवाज़ उठा रहा है. इस संगठन के प्रवक्ता का कहना है कि हम नकदी विहीन समाज के खिलाफ़ नहीं हैं, लेकिन जिस तेज़ गति से यह सब किया जा रहा है उस पर नियंत्रण चाहते हैं. इनका कहना है कि अगर देश में नकदी का उपयोग प्रतिबंधित नहीं किया गया है तो लोगों को उसका उपयोग करने की सुविधा भी मिलनी चाहिए. स्वीडिश समाज के बहुत सारे लोग, विशेषकर 75 वर्ष या  उससे अधिक वाले बुज़ुर्ग विभिन्न कारणों से नई भुगतान व्यवस्था को नहीं अपना पा रहे हैं. कुछ को इण्टरनेट सुलभ नहीं है, कुछ कार्ड का इस्तेमाल करने में सहज अनुभव नहीं करते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें नकदी का  प्रयोग करने में ही सुख  मिलता है. बहुतों की आपत्ति यह भी है इस नई भुगतान व्यवस्था के कारण उन्हें अनावश्यक व्यय भार वहन करना पड़ता है. जो लोग अधिक सजग हैं उनकी आपत्ति यह भी है कि सत्ता तंत्र इस नकदी विहीन व्यवस्था का दुरुपयोग भी कर सकता है और अगर वह चाहे तो किसी को भी इसके उपयोग से वंचित कर उसे पूरी तरह असहाय बना सकता है. इस व्यवस्था के कारण व्यक्ति की निजता में सेंध की बात भी बहुतों को नागवार गुज़रती है. उनका कहना है कि इस व्यवस्था से वो अनाम रहकर तो कुछ खरीद ही नहीं सकते हैं.

स्वीडन में नकदी विहीनता के खिलाफ़ जो आवाज़ें उठ रही हैं वे सितम्बर 2018 में होने वाले देश के आम चुनावों को भी प्रभावित करेंगी, ऐसा माना जा रहा है.

ये तमाम बातें हमारे लिए भी विचारणीय तो हैं ही.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक स्तम्भ कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 12 जून, 2018 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.