Sunday, December 14, 2008

कामयाबी के पीछे क्या है?

ब्लिंक और द टिपिंग पॉइंट जैसी बेस्ट सेलर पुस्तकों के लेखक माल्कम ग्लैडवेल की हाल ही में प्रकाशित किताब आउटलायर्स: द स्टोरी ऑफ सक्सेस इस बात की पड़ताल करती है कि क्यों कुछ लोग अपनी ज़िन्दगी में बेहद कामयाब रहते हैं और क्यों अन्य अपनी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाते. सेल्फ मेड मेन की प्रचलित अवधारणा को सिरे से खारिज़ करते हुए ग्लैडवेल बलपूर्वक कहते हैं कि सुपरस्टार अपनी प्रतिभा और मेधा के दम पर अचानक अवतरित नहीं हो जाते, बल्कि वे अनिवार्यत: अनेक छिपी हुई सुविधाओं और असामान्य अवसरों का लाभ लेकर और अपनी सांस्कृतिक विरासत के बलबूते पर कठिन परिश्रम कर वह सब अर्जित कर पाते हैं जो दूसरों को मयस्सर नहीं होता. अपनी स्थापना की पुष्टि के लिए ग्लैडवेल मोज़ार्ट से लगाकर बिल गेट्स तक की ज़िन्दगी का विश्लेषण करते हैं और कहते हैं कि जो सफलता ऐसे लोगों को मिली, कुछ तो उसके हक़दार थे, कुछ ने उसे अर्जित किया और कुछ को वह केवल भाग्यवश ही मिल गई.

दर असल आउटलायर एक वैज्ञानिक पारिभाषिक शब्द है, जिसका अभिप्राय है ऐसी चीज़ या परिघटना जो सामान्य अनुभव के बाहर हो. जैसे, ग्लैडवेल कहते हैं कि गर्मियों में पेरिस में सामान्यत: मौसम गर्म या बेहद गर्म रहता है. लेकिन अगर अगस्त के मध्य में किसी दिन तापमान शून्य से नीचे चला जाए तो उसे आउटलायर कहा जाएगा. ग्लैडवेल इस किताब के ज़रिये हमें यह समझाना चाहते हैं कि जो लोग शीर्ष तक पहुंच पाते हैं वे कैसे वहां तक पहुंचते हैं. हर आउटलायर की एक कथा होती है जो उस पूरे परिप्रेक्ष्य को उजागर करती है जिसमें वह कामयाब होता या होती है. इस पूरे परिप्रेक्ष्य में शामिल हैं उसका परिवार व संस्कृति, दोस्तियां, बचपन, जन्म के संयोग, इतिहास और भूगोल. ग्लैडवेल कहते हैं कि केवल यह भर पूछ लेना काफी नहीं है कि कामयाब लोग कैसे होते हैं, यह भी पूछा जाना ज़रूरी है कि वे कहां के रहने वाले हैं. इससे भी तै होता है कि कौन कामयाब होगा और कौन नहीं.

ग्लैडवेल कहते हैं कि कामयाबी के लिए किसी का मेधावी होना ही काफी नहीं है. इस बात को वे एक मार्मिक प्रसंग से साफ करते हैं. प्रसंग है क्रिस्टोफर लंगन का, जो अपने 195 के आई क्यू (आइंस्टीन का आई क्यू 150 था) के बावज़ूद मिसौरी के एक अस्तबल में काम करने से आगे नहीं बढ सका. क्यों नहीं वह वह एक न्यूक्लियर रॉकेट विशेषज्ञ बन गया? इसलिए कि उसका परिवेश ही ऐसा था कि वह अपनी असाधारण मेधा का फायदा नहीं उठा सका. इसलिए कि उसे जो भी करना था, अपने दम पर करना था, जबकि, बकौल ग्लैडवेल, दुनिया में कोई भी –चाहे वह रॉक स्टार हो, प्रोफेशनल एथलीट हो, सॉफ्ट्वेयर बिलिनेयर हो या कोई विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न हो– अकेले कुछ नहीं कर पाता. बिल गेट्स की कामयाबी का विश्लेषण करते हुए ग्लैडवेल कहते हैं कि वे आज सफलता के उस मुकाम पर नहीं होते अगर उनके प्राइवेट स्कूल ने उन्हें एक उन्नत कम्प्यूटर सुलभ न कराया होता. बाद में भी वे और भी बेहतर कम्प्यूटरों पर काम इसलिये कर सके क्योंकि वे वाशिंगटन के पास रह रहे थे. ग्लैडवेल का कहना है कि बहुत सारे युवाओं में बिल गेट्स जैसी प्रतिभा है लेकिन वे उनकी तरह की कामयाबी इसलिए हासिल नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें वैसे उन्नत कम्प्यूटरों पर काम करने का अवसर नहीं मिल पाता.

किताब यह तो बताती है कि जो लोग कामयाब हुए वे कैसे और क्यों हुए, लेकिन यह नहीं बताती कि कामयाबी अर्जित कैसे की जाए. इसी तरह, इस किताब को पढते हुए यह गुत्थी भी नहीं सुलझ पाती कि क्यों कुछ लोग तो उन्हें मिले अवसरों का भरपूर फायदा उठा लेते हैं और क्यों अन्य ऐसा नहीं कर पाते. लेकिन, इसके बावज़ूद, किताब दिलचस्प और विचारोत्तेजक है. छोटी-छोटी अनेक सूचनाएं इसके आकर्षण को और बढाती हैं, जैसे यह कि ज़्यादातर पेशेवर हॉकी खिलाड़ियों का जन्म जनवरी में ही हुआ है, या एशियाई बच्चे गणित में इसलिए निष्णात होते हैं कि उनके मां-बाप हज़ारों सालों से चावल की खेती में भरपूर मेहनत करते रहे हैं, या सिलिकॉन वैली के ज़्यादार अरब पति 1955 के आस पास जन्मे हैं.


Discussed book:
Outliers: The Story of Success
By Malcolm Gladwell
Published by: Little, Brown and Company
Hardcover, 320 pages
US $ 27.00

राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिष्ट में मेरे पाक्षिक कॉलम किताबों की दुनिया में 14 दिसम्बर, 2008 को प्रकाशित.







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