Tuesday, March 8, 2016

महज़ धूल का एक कण नहीं हूं मैं

संयुक्त राज्य अमरीका के उत्तर पश्चिमी  राज्य साउथ कैरोलिना के एक हाई स्कूल में हाल में घटी घटना का वर्णन हमें काफी कुछ सोचने को विवश कर रहा  है. घटना यह है कि एक कक्षा खत्म होने और दूसरी शुरु होने के बीच के लगभग चार मिनिट के अंतराल में एक तैंतीस वर्षीय शिक्षिका अपना मोबाइल कक्षा में ही छोड़ कर किसी और काम से बाहर चली जाती है. तभी एक सोलह वर्षीय विद्यार्थी उनका मोबाइल उठाता है, उसकी सामग्री को खंगालता है और उसमें से उस अध्यापिका की चार कम वस्त्रों वाली या निर्वसन तस्वीरों को अपने मोबाइल कैमरे में कैद कर लेता है. तभी वो शिक्षिका लौट आती है. विद्यार्थी उससे कहता है कि आपके फैसले का दिन आन पहुंचा है. शिक्षिका इस बात को बहुत गम्भीरता से नहीं लेती है. लेकिन  इसके बाद वो विद्यार्थी उन चार तस्वीरों के रंगीन प्रिण्ट बनवा कर अपनी मैं’म के मेल बॉक्स में पहुंचाता है, इन तस्वीरों में से एक के पीछे वो उन्हें और उनके बेटे को धमकी का एक सन्देश भी लिख भेजता है. इसी के साथ वो विद्यार्थी उन तस्वीरों में से एक को सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से अपने सहपाठियों के साथ साझा भी करता है. शिक्षिका बाद में बताती हैं कि उन्होंने ये सेल्फियां वैलेण्टाइन दिवस पर अपने पति को भेजने के लिए ली थीं, और उनके मोबाइल में कोई पास-कोड नहीं था.

इतना वृत्तांत बहुत आम किस्म का है. जिन लोगों का शिक्षण संस्थाओं से ज़रा भी ताल्लुक है वे जानते हैं कि विद्यार्थी इससे भी गम्भीर ‘शरारतें’ करते रहते हैं और शिक्षकगण अपनी तरह से उनका सामना भी करते रहते हैं. लेकिन यहां घटनाक्रम कुछ अलग मोड़ लेता है. वो शिक्षिका जब अपने प्रिंसिपल से इस घटना की शिकायत करती है तो उसे सलाह दी जाती है कि वो इसकी अनदेखी कर दे. लेकिन उससे अगले ही दिन उसे बुला कर कहा जाता है कि ज़िला अधीक्षक ने उसका इस्तीफा मांगा है! वो अधीक्षक से बात करके इसकी वजह जानना चाहती है तो उसे कहा जाता है  कि इस्तीफा इसलिए मांगा जा रहा है कि एक तो उसके फोन में आपत्तिजनक सामग्री थी, और दूसरे यह कि उसने यह सामग्री अपने विद्यार्थियों को सहज  सुलभ करवाई! ये अधीक्षक महोदय बाद में अपने एक बयान में कहते हैं कि सबूतों और बयानों से अनुमान होता है कि जब यह घटना घटी तब वो शिक्षिका उस जगह पर नहीं थी जहां पर उसे होना चाहिए था. इस वजह से एक विद्यार्थी ने उनके मोबाइल फोन से अनुपयुक्त सामग्री  चुरा कर उसे औरों के साथ साझा कर ली. यानि अगर वो शिक्षिका  अपने विद्यार्थियों की ठीक से निगरानी करती तो एक बहुत गम्भीर समस्या को घटित  होने से रोक सकती थी. उन्होंने यह भी कहा कि इस घटना का विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

इसके फौरन बाद, घटनाक्रम से क्षुब्ध होकर इस शिक्षिका ने अपना इस्तीफा दे दिया. उसकी पीड़ा यह भी थी कि स्कूल ने उस विद्यार्थी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की. लेकिन इस्तीफा देने के अगले ही दिन उसने  यह कहते हुए इसे वापस लेने की पेशकश कर डाली कि तब मैं अपने  कैरियर के बारे में फैसला करने की सही मन:स्थिति में नहीं थी. लेकिन उसके  अनुरोध को अनसुना  किया गया.

इसके बाद जो होता है वह ग़ौर तलब है. उस इलाके के कोई ग्यारह हज़ार नागरिक एक ऑनलाइन याचिका पर दस्तखत कर प्रशासन से मांग करते हैं कि उस शिक्षिका को फिर से काम  पर लिया जाए. “जिन हालात में उन्हें बाहर किया गया है वे पूरी तरह अस्वीकार्य हैं.”  इससे उत्साहित उस शिक्षिका ने भी कहा कि “मैं जानती हूं कि मैंने कोई कानून  नहीं तोड़ा है. हम सबके मोबाइल फोनों में अनुपयुक्त तस्वीरें होती हैं. अपने पति के साथ अंतरंग रिश्ते रखना अनुचित बात नहीं है. यह भी कि वो विद्यार्थी सही और गलत का फर्क जानता है. मेरे मोबाइल से तस्वीरें निकालने और उन्हें बाहर भेजने का आखिरी  फैसला तो उसी का था.”

इससे भी अहम बात यह कि वहां के विद्यार्थियों ने भी एक ऑनलाइन याचिका  दायर की है जिसमें कहा गया है कि “यह शिक्षिका उसकी निजता पर भीषण प्रहार की शिकार है. एक विद्यार्थी ने उनकी निजी तस्वीरों को गैर कानूनी रूप से  चुराया और अपने स्कूल के दूसरे विद्यार्थियों को भेजा.” खुद उस शिक्षिका ने भी एक  बहुत महत्वपूर्ण बयान में कहा कि “अपने लिए खुद मुझी को खड़ा  होना पड़ेगा. अगर मैं इस बात को भुला दूं तो मुझे लगेगा कि मैं महज़ धूल का एक कण हूं और तब मैं अपने ज़िला कार्यालय को इस बात की इजाजत दे रही होऊंगी कि वो मुझे रौंद  डाले.”

क्या इन बातों में आपको भी एक परिपक्व और विकसित प्रजातंत्र की झलक मिलती है?

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अन्तर्गत मंगलवार, दिनांक 08 मार्च, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.