Tuesday, September 2, 2014

दो मिनिट की देरी भी कोई देरी होती है?

हर देश की अपनी जीवन शैली होती है, अपने तौर-तरीके होते हैं. मैं इसे बहुत स्वाभाविक मानता हूं और हंसी-मज़ाक की बात अलग है, इस बात को लेकर कोई ख़ास आलोचनात्मक नज़रिया भी नहीं रखता हूं. हम जैसे हैं, हैं. न तो यह ज़रूरी है कि दूसरे हम जैसे बनें और न ही यह ज़रूरी है कि हम उन जैसे बनें!

न जाने कितनी चीज़ें हैं जो हममें और सिर्फ हममें ही हैं. किसी अजनबी से मिलते ही हम कितनी जल्दी उसकी निजी चीज़ों के बारे में पड़ताल करने लगते हैं? इसकी लज्जत वो ठण्डे अंग्रेज़ क्या जानें? हम न सिर्फ जानते बल्कि मानते भी हैं कि अतिथि देवता होता है, इसलिए चाहे जब किसी के घर जा धमकते हैं. सूचना देकर और सुविधा पूछकर तै शुदा  कार्यक्रमानुसार किसी के यहां जाने में भला यह सुख कहां है? जब कोई हमारे यहां आता है और हम उससे चाय-पानी के लिए  पूछते हैं तो उसका जवाब हम पहले से जानते हैं कि वो घर से करके ही आया है, लेकिन फिर भी हम उसका आतिथ्य सत्कार करते हैं. वो  उसकी कर्टसी थी और यह हमारी कर्टसी होती है.

ऐसी अनगिनत बातें हैं जो चाहे अनचाहे हमारी जीवन–शैली का हिस्सा बन चुकी हैं और हमें उनसे कोई ख़ास असुविधा भी नहीं होती है. लेकिन जब हमसे भिन्न जीवन-शैली वाला कोई व्यक्ति हमसे टकराता  है तो कई बार बड़ी अजीब स्थितियां पैदा  हो जाती हैं. अब समय की पाबन्दी को ही लीजिए. घड़ी हम चाहे कितनी ही महंगी क्यों न पहन लें, उसकी सुइयों को अपनी ज़िन्दगी पर हावी हम नहीं होने देते. समय को लेकर हम इतने आज़ाद खयाल हैं कि हमने एक नया पद ही गढ़ लिया है – इंडियन स्टैण्डर्ड टाइम. निर्धारित समय से डेढ़ दो घण्टे विलम्ब से पहुंच कर हम बिना शर्मिन्दा हुए इस पद को आगे कर सकते हैं! लेकिन कभी-कभी बड़ी गड़बड़ भी हो जाती है. जैसी भारतीय  विज्ञापन दुनिया की बहुत बड़ी हस्ती अलीक पदमसी के साथ हुई. 

अलीक ने, आपको याद ही होगा कि सर रिचर्ड एटनबरो की महान फिल्म ‘गांधी’ में जिन्ना की भूमिका निबाही थी. और अभी हाल ही में जब एटनबरो का निधन हुआ तो अलीक ने अपने श्रद्धांजलि लेख में यह बात लिखी है. अलीक बताते हैं कि वे ‘गांधी’  फिल्म के लिए अपनी पहली शूटिंग के लिए दिल्ली पहुंचे और एक बड़े होटल में ठहरा दिए गए. जैसे ही वे अपने कमरे  में पहुंचे, उनके पास एक पेज की कॉल शीट पहुंचा दी गई जिसमें अगले दिन के कार्यक्रम की सूचना थी. यथा कार्यक्रम उन्हें सुबह साढ़े पांच बजे उठा दिया गया, छह बजे नाश्ता दे दिया गया और साढे छह बजे वे मेक अप रूम में जा पहुंचे. वहां मुद्दत के बाद सईद जाफरी से उनकी मुलाक़ात हुई और वे दोनों गपशप करने लगे. अचानक अलीक का ध्यान अपनी घड़ी की तरफ गया और वे भाग कर होटल की लॉबी में कार शिड्यूलर, जो एक अंग्रेज था, के पास पहुंचे, और उससे पूछा कि क्या उनकी कार तैयार है? शिड्यूलर जॉनसन ने उनकी तरफ देखा और पूछा, क्या आप मिस्टर जिन्ना हैं? हां में जवाब पाने पर उसने फिर पूछा, आपकी कार  कब पहुंचनी थी? अलीक ने कहा, सात बजे! तो,  जॉनसन  ने शांत  भाव से कहा, वो जा चुकी है! अलीक के पूछने पर उसने बताया कि क्योंकि कार का समय सात बजे का था, इसलिए वो दो मिनिट पहले दूसरे कलाकारों को लेकर जा चुकी है. अलीक ने पूछा कि अब क्या करें, तो जॉंनसन ने कहा कि अब आप आइन्दा से समय पर आया करें! आगे की बात संक्षेप में यह कि अलीक को सवा सात बजे जाने वाली दूसरी कार में भेजा गया. जब वे लोकेशन पर पहुंचे तो उनकी मुलाकात सर रिचर्ड से हुई, और रिचर्ड ने छूटते ही उनसे  कहा, अलीक  आप बहुत देर से आए हो!  अलीक  ने माफी मांगते हुए कहा कि वे महज़ दो ही मिनिट तो लेट हुए हैं!, सोचिये, इस पर रिचर्ड ने उनसे क्या कहा होगा? रिचर्ड ने कहा कि ‘अलीक, तुम जानते हो कि मेरी फिल्म पर प्रति मिनिट एक हज़ार पाउण्ड का खर्चा हो रहा है, यानि दो मिनिट लेट होने का मतलब है दो हज़ार पाउण्ड की बर्बादी!’ अलीक के लिए उनका इतना कह देना  काफी था, क्योंकि उन्हें अपने पूरे रोल के लिए जो राशि मिलनी थी वो दो हज़ार पाउण्ड से कम थी.

अब आप ही बताइये, क्या दो मिनिट की देरी भी कोई देरी होती है? अच्छा हुआ अंग्रेज़ हमारे देश से चले गए!
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लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अन्तर्गत मंगलवार 02 सितम्बर, 2014 को दो मिनट लेट हुए तो दो हज़ार पाउण्ड बर्बाद शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.